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अनुसन्धान-७०
सिद्धांत-कोस वसि करीउ, नव-तत्त्व महा - मणि भरीउ । aणजीजइ साहस - धीरा, ज्ञान- दर्शन - चारित्र - हीरा । विण० ॥ २९२ ॥
सुविहित- गुण रयणे भरीआ, रथ सहस अढार जोतरीआ । चरण - करण- सुवर्ण समेटी, भरी लब्धि अठावीस पेटी ॥ विण० ॥ २९३॥
पंच संवर सार नगीना, अष्ट-जोग क्रिआणक लीना । नव ब्रहम - गुप्ति कस्तूरी, सुभ-लेस्या तेजमतूरी || विण० ||२९४ ॥
पंच सुमति - गुपति भरी खंडा, वीस थानक अगरू - करंडा । यति-धरम बावना-चंदनां, भरीआं बहू हरखा - नंदनां ॥ विण० ॥ २९५॥ बार भावना साकर- धूनी, बार भेदई भरी तप- गुणी ।
समकित सुध - गुल ग्रहीजइ, पंचाचार पोठ भरी लीजइ ॥ विण० ॥ २९६॥
सतरभेद संज्यम घनसारा, भरीआ बहू पोठी भारा ।
वेयावच दस कापड-तंगी, धरम-ध्यान केसर बहू - रंगी || विण० ॥२९७||
पचखाण दसे लाल तंबू, नवि भेदि मिथ्या-मति अंबू ।
षट आवश्यक मीठाई, दसविध सुख सबल भुंजाई ॥ विण० ॥ २९८॥
समता वणजारी संगइ, सुख-सेजिं रमइ मन - रंगई ।
मनभावइ करत पयाणा, वाजइ सज्झाय बहु नीसाणा || विण० ॥२९९॥ परिवार सबल मुनि धोरी, गुण गावइ अहनिशि गोरी । श्रीकल्याणविजय मुनि - राया, गूजर धरइ ठावइ पाया || विण० ॥ ३००॥
आयु षट - जीवन - प्रतिपाला, हूआ बहू पुण्य-सुगाला । वंद हीरर-चरण- अरविंदा, जय जंपर परमाणंदा || विण० ||३०१ ||
इति वणजारानी ढाल ||१४||
दूहा ॥ राग धन्यासी ॥
कल्याणजी गुरु वंदतां, लहीइ कांचन - कोडि । जय जंपइ प्रय ऊगतइ, वांदु बइ कर जोडि ||३०२||