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________________ ९६ अनुसन्धान-७० सिद्धांत-कोस वसि करीउ, नव-तत्त्व महा - मणि भरीउ । aणजीजइ साहस - धीरा, ज्ञान- दर्शन - चारित्र - हीरा । विण० ॥ २९२ ॥ सुविहित- गुण रयणे भरीआ, रथ सहस अढार जोतरीआ । चरण - करण- सुवर्ण समेटी, भरी लब्धि अठावीस पेटी ॥ विण० ॥ २९३॥ पंच संवर सार नगीना, अष्ट-जोग क्रिआणक लीना । नव ब्रहम - गुप्ति कस्तूरी, सुभ-लेस्या तेजमतूरी || विण० ||२९४ ॥ पंच सुमति - गुपति भरी खंडा, वीस थानक अगरू - करंडा । यति-धरम बावना-चंदनां, भरीआं बहू हरखा - नंदनां ॥ विण० ॥ २९५॥ बार भावना साकर- धूनी, बार भेदई भरी तप- गुणी । समकित सुध - गुल ग्रहीजइ, पंचाचार पोठ भरी लीजइ ॥ विण० ॥ २९६॥ सतरभेद संज्यम घनसारा, भरीआ बहू पोठी भारा । वेयावच दस कापड-तंगी, धरम-ध्यान केसर बहू - रंगी || विण० ॥२९७|| पचखाण दसे लाल तंबू, नवि भेदि मिथ्या-मति अंबू । षट आवश्यक मीठाई, दसविध सुख सबल भुंजाई ॥ विण० ॥ २९८॥ समता वणजारी संगइ, सुख-सेजिं रमइ मन - रंगई । मनभावइ करत पयाणा, वाजइ सज्झाय बहु नीसाणा || विण० ॥२९९॥ परिवार सबल मुनि धोरी, गुण गावइ अहनिशि गोरी । श्रीकल्याणविजय मुनि - राया, गूजर धरइ ठावइ पाया || विण० ॥ ३००॥ आयु षट - जीवन - प्रतिपाला, हूआ बहू पुण्य-सुगाला । वंद हीरर-चरण- अरविंदा, जय जंपर परमाणंदा || विण० ||३०१ || इति वणजारानी ढाल ||१४|| दूहा ॥ राग धन्यासी ॥ कल्याणजी गुरु वंदतां, लहीइ कांचन - कोडि । जय जंपइ प्रय ऊगतइ, वांदु बइ कर जोडि ||३०२||
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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