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________________ जुलाई-२०१६ अनुक्रमिं संपूहतु, कहतु धरम-विचार । वइराट नयर-वर, दीर्छ नयणे ऊदार ॥२५९।। प्राकार-सुमंडित, कोटी-ध्वज-आवास । लक्खेसरि-लक्षित, बहू-व्यवहारि-निवास ॥२६०।। जिन-धरमई भावित, लीला-भोग-पुरिंद्र । भय-रहित विवेकी, वसइ लोकना वृंद ॥२६१।। जिन-भवन स-तोरण, भविअण-जन-विश्राम । कूआ-वावी-सरोवर-वाडी-वन अभिराम ॥२६२॥ जांणइं भू-भामिनी-भालई तिलक-समान । दीसे बहू सोभा-भासुर सुर-पुर-वान ॥२६३।। तिहां वसइ व्यवहारी, राज-मान रिधिवंत । संघ-पति भारहमल, सुत इंद्रराज पुण्यवंत ॥२६४।। गुरु-आगम निसुणी, हरख्यु मनि इंद्रराज । सामहीआं सपरेइं, करइ अतिघणइं दवाज ॥२६५।। बह सोभा नयरइं, देई आदेस करावइ । दर्पणमय तोरण, घरि घरि गुडीअ बंधावई ॥२६६।। सा बाला सोहइं, जाणइं देव-कुमार । बहू गज अलंकरीया, पाखरीया गति-सार ॥२६७|| नेजा बहू भातइं, राज-वाहण रथ कीध । बहु-सोहग सुंदरी, करि भंगार सुलीध ॥२६८।। केई हय-गय चडीया, करभ चड्या नर केवि । एक पालखि बइठा, बइठ सुखासन केवि ॥२६९।। वहिलई एक बइंठा, घम घम घूघर-माल । चकडोल एक बइठा, एक हीडइ नर पाला ॥२७०॥
SR No.520571
Book TitleAnusandhan 2016 09 SrNo 70
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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