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________________ अनुसन्धान-६९ अब अरज माहाराज सत गुराकी हजूर मै मांलम होई... दोहा - सिध श्री सरब ओपमा, हो दीननके नाथ, ब्रह्मरूप गुरुदेवजी, आपही करो सुनाथ... ३८ अनंत ओपमां आपकू, सतगुरुजी किरपाल, .. . अरजी लिखू उच्छाव , सुनज्यो दीन दयाल... ३९ (सर्वे उपमाने लायक सिद्धश्री, दीनजनोना स्वामी, अनंत उपमाथी विभूषित कृपाळु ब्रह्मरूप गुरुदेव आपने उमंग अने उत्साहथी अरजी लखुं छु ते दीनदयाळु थई सांभळजो.) छंद - पर्धरी - सिध श्री लिखू पहले प्रकास, सुभव है स्थान जांहा सतबासं, सिधि भले संत श्रीपति पिछांनि, सरब उपमां लाईक वे है जांनि... ४० वहै नगर धाम धन धरोजास, जाहां संत समागम निति प्रकास, . वहै दास धंनि नित चरणलीन, जिहि प्रेम अधिक ज्युं उदक मीन... ४१ संचित ही करम जिहिं दगध कीन, क्रियेमांन सुभा सुभ की है लीन, प्रारबधर हत है राग दोष, अह कुं गूंथत ति भले मोख... ४२ ___(हे सिद्ध गुरुदेव, पहेलो भूमिकामां आपने अरज करूं छु के ज्यां सन्तोनो वास छे ओवा सुन्दर स्थानमां अनेक सन्त सिद्ध श्रीपति वसी रह्या छे, जे तमाम उपमाओने लायक छे. आ नगरनुं धाम ज्यां नित्य संत समागमनो प्रकाश रेलाई रह्यो होवाथी उजासमय छे, नित्य परमात्माना चरणोमां लीन रहेवाने कारणे दास-भक्तो धन्य बन्या छे अने एमनो प्रेम पाणी अने मीननी माफक कायम वृद्धि पामे छे. जेमणे संचित कर्मो दग्ध करेलां छे तेओ पण हाल शुभ कर्मोना क्रियमाणमां लीन छे, प्रारब्धवशात् रागदोष मळेला होवा छतां अने गूंथीने मोक्ष पामे छे.) कुंडल्या - सतगुरु मेरै रामजन सदा रहो उरि मांहि, । तव प्रसाद येह है जीव के भरम करम मिटि जाई.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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