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मार्च - २०१६
हरीने मुक्ति अर्पनारा, भवसिंधुमांथी तारणहार मोटा जहाज सम, तमाम कामनाओ पूर्ण करनार धर्मनो सेतुबंध बांधनारा, त्रणे गुणोथी पर विहार करनारा गुणोना स्वामी अवा हिंमतरामजीने हुं वन्दन करुं छु.) कवित -
सुख ज्युं त्यागी जान तनक नही तनसूं नेहा, रिष जैसे प्रेम हंस ज्युं जान बिदेहा, दत्त डिगंबर जिसा असां जानो जन कोई, भरथर ज्यूं बैराग राग त्याग्यो जन जोई, ब्रह्मरूप माहाराज हो भव जल त्यारण जंन,
मूरति हिम्मतराजकी सदा बसो मो मंन... ३४ (जेमणे तमाम सुखोनो त्याग कर्यो छे, शरीर साथे तणखला जेटलो पण जेने स्नेह नथी, ऋषि जेवा प्रेमना हंस जाणे विदेही होय तेम, कोई कोई जेने दत्त दिगंबर जेवा गणावे छे, मनुष्योने जोई जेमणे रागनो त्याग करी राजा भर्तृहरि जेवो वैराग्य धारण कर्यो छे अवा भवजळना तारणहार ब्रह्मरूप हिम्मतरामजीनी मूर्ति सदाये मारा मनमा वसो ओवी प्रार्थना करूं छु.) दोहा - .
ज्युं बनमे ब्रछ बावनूं, सब चंदन कर भेह, जन हिंमतरांम प्रगट, अनंत वधारन देह... ३५ अब गादी माहाराज की, ब्राजे आप सुचेत, ग्यांन भगत चरचा करै, कर अचैतन चेत... ३६ चेतन सबकू करत है, भजन करावै पूरि,
जैसे जन कलू कालमै, .पाप करन सब दूरि... ३७
(जेम वनमां ओक ज बावना चंदननुं (अति किंमती गणाती चंदननी जातिन) वृक्ष होय तो अन्य तमाम चंदन वृक्षोनी किंमत वधी जाय छे ओम गुरु हिंमतरामजी महाराजनी गादीओ बिराजमान आप (सत्गुरुश्री दिलसुद्धरामजी) ज्ञान भक्तिनी चर्चा करीने, असावधान मनुष्योने चेतावीने भजन पूर्ण करावो छो, आवा कळियुगमां तमाम पाप दूर करो छो.)