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अनुसन्धान-६९
जाय छे अने भवपार ऊतरी जवाय छे. काम क्रोध तजीने रामनाम रटनारा, तमाम धर्मोमां पूज्य, अवा पोते पोतानाथी ज वश थया छे ओवा हरिदासजीने हुं वंदन करूं छु.) दोहा -
जैसे है हरिदासजी, निरबिकार नहैं काम,
जीव अनंतन पार करि, आप गले सुरधाम... ३१
(अवा निर्विकारी संत हरिदासजी अनेक जीवोने पार करी सूरधाम गया छे.)
मनहर - सुधाही को सार मांनूं अखर उदार जामैं प्रेमरस भरे सब आनंद रली लहै, भगति बर दाता सुसाता सब जीवन को अभै पद दाता सह कलके मली दहै, बरसै आनंदघन सरसै सभा के मधि सहसक्रत प्राक्रत के सबही कली कहै, स्वामी हरिदासजी के बांणी के मिठास आगे दाख सुकचांनी मुख मिश्री हुं सली गहै.
- ३२ (चन्द्रना प्रकाश सम शीतळ, अक्षर, उदार अने जेमां प्रेमरसथी सभर तमाम प्रकारना आनंद समाया छे, भक्तिनुं वरदान आपनारा, तमाम जीवोने सुखसाता अने अभयपद आपनारा, कळियुगना मेलने हटावनारा, सभा मध्ये आनंदनी वर्षा वरसावनारा, संस्कृत प्राकृतना जाणकार स्वामी हरिदासजीनी वाणीनी मिठाश आगळ द्राक्ष मों संताडी संकोच पामे छे अने साकर प्रशंसा करे छे.) छंद - भुजंगी - माहा भगति कारी कल्पब्रक्ष रूपा, अध्यात्म बाचा अगाधं अनूंपा, धन ग्यांन भारी दया तंन धारी, कीओ मुक्त रूपा हयों दुःख भारी, भव सिंध मांही बडे ही जिहाजं, सबै काम सारे बंधी धरम पाजं, गुणे पार विचरो भलै गुण स्वामं, नमो हिंमतरांमं नमो हिंमतरांम.... ३३
(कल्पवृक्ष समान महा भक्तिने धारण करनारा, जेमनी अध्यात्मवाणी अगाध अनुपम छे, अपार ज्ञान अने शरीरमां दया धारण करनारा, भारे दुःखो