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मार्च - २०१६
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(गुरु रामचरण महाराज अने रामजनजी बे शरीरमां ओक ज अंग होय, दूध अने पाणी जेम मळी गयां होय, कोई भेदाभेद नजरे चडे नहीं अम उभय बन्ने ओक ज स्थानमां वास करता हता, रामचरण- ध्यान करीओ अने रामजन प्रकाशित थाय, जगन्नाथ कहे छे के मने हरिनां जन अवा गुरु-शिष्य प्राप्त थाय छे.)
दोहा -
रांम गुरु अरु रामजन, तीनूं ओक सरूप ईनमें भेद न जांनीओ, त्यारण तिरण अनूंप... २२ तीन बहुणी नां मिटै, चोरासी की मार,
जगनाथ साची कहै, या में फेर न सार... २३ (राम, गुरु तथा रामजन से त्रणेनुं ओक ज स्वरूप छे, तारण तरण अनुपम ओवा आ संतोमां भेद करशो नहीं. आ त्रणनी कृपा विना चोराशीना फेरानो मार मटशे नहीं, अमां कोई सन्देह नथी ओम जगन्नाथ साची वात कहे छे.) . कबित्त - कलिजुगमै अवतार लें भगति पाट बैठे सही,
(छन्दनी दृष्टिले अहीं १ पद खूटे छे.) श्रीरामचरण महाराज आप भगती बिसतारा रांमजनजी पाट जीव बहोते निसतारा, दुल्हैरांम माहाराजजी नामथि भगती साजा, चत्रदास माहाराज तास के पाट बिराजा, नरांणदासजी राज ही भगति रूप जाणे मेही
तास पाट हरिदासजी राम रूप राजै येही.... २४
(कळियुगमां अवतार लई भक्तिनी पाट पर बिराजी श्रीरामचरण महाराजे भक्तिनो विस्तार को, अने रामजनजीओ अनेक जीवोनो उद्धार कर्यो, तो दुल्हेरामजी, चत्रदासजी महाराज, नारायणदासजी अने तेमनी पाटे हरिदासजी राम रूपमां ज बिराजमान हता.)