________________
अनुसन्धान-६९
सतगुरु गुण अगम है, निगम न पावै पार,
जगनाथ आणा उकति, सब कोई करै विचार. ९ (रामचरण गुरुने नित्य पकडी राखे अने अन्य कोई ईच्छा न दाखवे ओ बे वस्तु वेद, साधुजनो अने स्मृतिग्रन्थो कहे छे तेम भवजळमांथी तारी : देनारी छे. परमात्माथी पण गुरुनी विशेषता ओ छे के परमात्मा त्रण गुणोमां बांधे छे, ज्यारे सतगुरु त्रणे गुणोना बंधनमांथी छोडावनारा छे. पोते तो तरे छे पण जगतने पण तारे छे, यमना पंजामांथी छोडावे छे अवा बळवान मारा सतगुरु रामचरणना हुं गुण गाउं छु. सतगुरुना गुणो अगम छे, जेनो शास्त्रो पण पार पामी शकता नथी अवां जगन्नाथनां (मारां) वेणनो बधा विचार करजो). __ छंद - निसाणी -
रामचरण गुरु ब्रह्म मिलि बोले जन बाणी साच जूठी नरणै कीयो कहै बचन प्रमाणी, कीरत निज सतगुर तणी मुखि आप बखांणी, राम भजन प्रतापथी जग सारै जाणी, भरती बर बैराग ले कुल चाढयो पांणी, प्रीया येक सत येक हो निज सुक्ति बसांणी, साध लछि सारै लीयां निरमल निरबांणी, निरसंसै निरवासनां जन येह सह नाणी, भोजन ले निज व्रतसुं नही आस बिरांणी, जगत सकल पावां पडे कया राजा राणी, नाना सुख हाजर खडा नहीं देख फुलांणी, जगतर कं धीजे नहीं जैसी मन आंणी, तिरलोकी धन पाई कैं सनां जध टांणी, ईम कलिजुग घोर अंधारमैं हरि भगति चलांणी, भजन करै आलूं पहर नहीतु रतअ धांणी, रांम सुधा पावै पीवै जन बडे रसांणी,. . देस देस परगट भये ब्रिद बहो प्राणी, तोल माफ आवे नही ये अकत काहांणी,