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मार्च - २०१६
(श्रीरामचरण महाराज! आपनुं नाम अगम्य छे, जेनो पार निगम अटले के शास्त्रो पण न पामी शके एने हुं मारा अक मुखथी कई रीते कही शकुं?) कबित -
श्रीरामचरण महाराज, भलां अवतार ज लीनों, गुरु मुख सबद उचार, धरम आद बहू झीनो, राम मंत्र को जाप छाप, धरि रामसनेही सब जीवन रिछपाल, व्रत सुख सिंध जु अही, बीतराज मन जीति प्रीत, हरिसूं बहो भारी आळं पहर अखण्ड, भजनसं लागी तारी करणीका नही पार, काहां लगि बरणि सुणाउं, उ लखी न जावे कोई, बुधियाडी कया गाउ, 'अधम-उधारण' रामजी, बिडद नभांवन आप,
असे सतगुरुकी सरन, मिटि जाई तोसों ताप. ५
(श्रीरामचरण महाराजे कृपा करीने अवतार लीधो छे. सतगुरुना मुखेथी आदि धर्मनो अत्यंत सूक्ष्म शब्द राममंत्रनो जाप झीलीने अने रामसनेही सम्प्रदायनी छाप धरीने तमाम जीवोना रक्षण अर्थे सुखना सागर जेवं वर्तन करनारा, वितरागी मनने जीतनारा अने जेनी परमात्माथी अत्यंत प्रीति छे, आठे प्रहर अखण्ड भजनथी जेनी ताळी लागी छे, जेनी करणीनो कोई पार नथी अने कई रीते वर्णवी शकुं ? जेने कोई लखी के वर्णवी शके नहीं आने मारी मर्यादित बुद्धिथी केम गाउं ? अधमओधारण रामनु बिरुद निभावनारा आप जेवा सतगुरुने शरणे जतां तमाम-त्रिविधिना ताप मटी जाय छे.)
दोहा - .
रामचरण 'गुरु साहि निति, ओर न रिछक कोई, बेद साध सुमरति कहै, भवजल त्यारण दोई. ६ हरि सूं गरु बसेषता, कैसे जाणी जाई, हरि बांधे गुण तीनमैं, सतगुरु लेत छुडाई..७ आप तिरै त्यारै जगत, जमसूं लेह बचाई, जैसे सदगुर सबल है, रामचरण गुण गाई. ८