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दो
अनुसन्धान- ६९
स्वामीजी श्री १०८ श्री रामचरणजी महाराज सदा सहाई, स्वामीजी श्री १०८ श्री हरिदासजी महाराज सदा सहाई ... 'अथ अरजी लिख्यते"
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सिध श्री सरव ओपमा, लायक हो महाराज, अरजी लिखूं उच्छाव सूं, अ मालम होई है आज. १ आप सदा सुखदांन हो, निति निरंजन रूप,
परम संत आनन्दमय, उपमां ताहि अनूंप. २
(सिद्धश्री सर्वै उपमालायक महाराजश्रीने मालुम थाय के मनना अति उमंगथी आ अरजी लखी रह्यो छं. आप तो सदा सुखना दाता छो, नित्य निरंजनरूप छो, आनंदमय परम संत छो, अनुपम ओवा आपने कई उपमा आपी शकाय ?)
कबित
श्रीरामानंद ज्युं प्रगट, संत ही दास उजागर, ररंकार की छांय बडे, जन सुख के सागर, वा गादी पर रहै, क्रिपालं परम दयालं जिनके चरणां परत सबै जीव होत निहालं
जिनके सिष समरथ भये, जनम सुधारण राज, कलि जीवन हिति प्रगटे, श्रीरामचरण महाराज. ३
(परम गुरु श्रीरामानंदजी महाराज जेवा ज प्रगट संत, जे दास्यभक्तिने उजागर करनारा, ररंकारना जापनी छायामां वसनारा, सुखना सागर ओवा मोटा महापुरुषनी गादी पर बेसीने परम दयाळु - कृपाळु के जेना चरणे- शरणे आव्याथी तमाम जीवो न्याल थई जाय छे, जेना अनेक समर्थ शिष्यो छे ओवा रामचरण महाराज आ कळियुगना जीवोना हित माटे प्रगट थया . )
सोरठा
श्रीरामचरण महाराज, नांम तुमारो अगम है, निगम न पावै पार, ओके मुखि में काहा कहूं. ४