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मार्च - २०१६
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सहकुटुम्ब दीक्षा लीधेल, अने गुरु रामचरणजीनी वाणीनुं प्रथम संकलन कर्यु. तथा पोताना काव्योनो संग्रह 'नवलसागर'ना नामे तैयार करेल, आ उपरान्त 'सर्वांगसार'नामे ८५ जेटला सन्तो-(जेमां गोरख, नामदेव, कबीर, अग्रदास, नरसी, पीपा, रैदास, दादु, मीरां, मतिसुन्दर, मलुक, काजीमहेमूद, सम्मन, काळु, घाटमदास, द्वारकादास, वैणी, प्रेमदास, बोहिथदास, बालकराम, मुरलीराम, माधौदास, पृथ्वीनाथ, चेतन, जईरामदास, जईमल, भींव, मांडण, मोतीराम, मुकुन्द, सोम वगेरे ख्यात, अल्पख्यात अने अज्ञात कविओ)नी रचनाओनो संचय करेलो.
रामसनेही सम्प्रदाय निर्गुण रामनी उपासना करे छे. सम्प्रदायना मूळ पुरुष श्रीरामचरणजी वणिक परिवारमाथी आवता होईने जैन धर्मना घणा सिद्धान्तो आ सम्प्रदाय साथे संकळायेला जोवा मळे छे. प्रतिदिन पांच वखत प्रार्थना-उपासना करे छे. काष्टना कमंडळमां पाणी अने माटीना वासणोमां भोजन करे छे. दीवो प्रकटावे पण कोई जीवजन्तु बळी न जाय माटे ढांकी राखे छे. चातुर्मासमां अनिवार्य कारण होय तो ज बहार नीकळे छे. रात्रे भोजन के पाणी लेता नथी. वैरागीओमां अधिकतर 'विदेही', 'अवधूत' के 'मौनी' दशामां रहे छे. केटलाक साधु वस्त्रो धारण करता नथी. महंत सदाये 'शाहपुरा'मां वसे छे. पांच मुख्य साधुओना पंच के पंचायत द्वारा आश्रमनो वहीवट चाले छे. रामसनेही सम्प्रदायना मठोने रामदुवारा तरीके
ओळखवामां आवे छे, जेमा नागौर, मूंडवा, लाडनू, खजवाणा के कुचेरा, पोकरण, बीकानेरना रामदुवारा मुख्य गणाय छे.
- प्रस्तुत पत्रनी रचनामां प्रादेशिक सधुक्कडी हिन्दी भाषानो ज महत्तम उपयोग थयो छे. मारी क्षमता मुजब आ पत्रनुं सम्पादन कर्यु होई केटलाक स्थाने पंक्तिओ स्पष्ट थई नथी. त्यां अन्डरलाईन करी छे अने अर्थघटनमां टपकां करी खाली जग्या राखी छे, ते अंगे जाणकारोने मार्गदर्शन आपवा विनन्ति छे. सम्पादनार्थे प्रतनी झेरोक्ष आपवा बदल श्रीकैलाससागरसूरिजी ज्ञानभण्डार (कोबा)ना व्यवस्थापकश्रीनो तथा हस्तप्रतनी झेरोक्स परथी वाचना करी आपवा बदल मुनिश्री सुयशचन्द्रविजयजी गणि तथा सुजसचन्द्रविजयजीनो खूब खूब आभार. अने परम पूज्य आचार्यश्री विजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज साहेबे आ कार्य माटे मने लायक गण्यो मे बदल मारी जातने भाग्यशाळी गणुं छु.