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अनुसन्धान-६९
सन्तो-भक्तो द्वारा हजारोनी संख्यामां रचायेली गद्य/पद्यरचनाओ नोंधणी अने सूचि माटे कोईक अभ्यासुनी राह जोई रही छे.
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__ प्रस्तुत पत्र जैनेतर रामानंदजीनी परम्पराना, रामसनेही सम्प्रदायना महन्त स्वामी श्री १०८ दिलसुद्धरामजी (अव. वि.सं. १९५३ / ई.स. १८९७)ने उद्देशीने माळवाना रतलाम शहेर (कडी ७४-७५)मां रामदुवारा नामना धर्मस्थानके मोकलायो छे. ज्यां (शाहपुरा-मेवाडनी मुख्य गुरुगादीना गादीपति) महन्त श्रीदिलसुद्धरामजी उपरांत ९० जेटला सन्तो/साधुजनो हाल निवास करी रह्या छे. पत्र अपूर्ण होवाथी कोणे, कई सालमा पत्र लखाव्यो छे ते स्पष्ट थई शकतुं नथी. पत्र- लेखन दिल्हीकटला-इन्द्रप्रस्थ (पद्य ५७ अने १३२)थी कवि जगन्नाथ द्वारा थयुं छे. सात पद्यो (९, १०, १८, १९, २०, २१, २३)मां 'जगन्नाथ' नामाचरण मळे छे. लखनार जगन्नाथ साथे दिल्ही कटलाना सन्तस्थानमा रामप्रसाद, भगतराम, भागीरथीराम, नानो भजनांराम वगेरे चारेक साधुजनो निवास करे छे. अहीं (पद्य ११९) 'अमरावसिंहनी विनती' शब्दो द्वारा कदाच ते समयना राजवीनो निर्देश थयो होवानो सम्भव छे. प्राप्त अधूरी झेरोक्स नकलना पाछळना भागमा मात्र आटलुं वंचाय छे - ईति अरजी संपूरण, मिति श्रावण सुदी ५ बुधवारे शुभं भवतु |
विज्ञप्तिपत्र लखनारा जगन्नाथ सोनी ई.स. १८२४ सुधी हयात हता. जेमनी 'जथारथ बोध', 'फूलडोल समाधि', 'ब्रह्मसमाधि लीन जोग', 'गुरु लीला विलास', 'चौराशी बोल', 'बिनता बोल' जेवी रचनाओ रामसनेही सम्प्रदायमां खूब जाणीती छे.
पत्रनी शरुआतमां रामसनेही सम्प्रदायना स्थापक स्वामी रामचरण महाराजनी स्तवना कराई छे. त्यार पछी भुजंगी छन्दना पद्योमां रामचरण, रामजन, दूल्हैराम, चत्रदास, नारायणदास, हरिदास, हिंमतरामजीनी स्तुति कवि करे छे. महंत श्री १०८ दिलसुद्धरामनी वर्णनी पद्य ३८ थी १००मां कराई छे. त्यार पछीना पद्योमा सन्त श्रीदिलसुद्धरामजी साथे बिराजमान साधुजनोना गुणोना वर्णन साथे यादी दर्शावीने दिल्ही पधारवानी विनन्ति करवामां आवी छे, पत्रान्ते सहवर्ति साधुवृन्दनी पण वन्दनापूर्वक विनन्ती कविओ आलेखी छे. त्यार पछी गुरुमहिमाना पद्यो वर्णवतां पत्र अपूर्ण रहे छे.
अत्यारे प्राप्त पत्रमा १३३ कुल कडी छे, पण हस्तप्रतमां सळंग क्रम तो मात्र ११७ सुधीना ज अपाया छे, ओ पछी (हजुर पधारणेको दोहा) पद्योमा १,२,३