SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्च - २०१६ रामसनेही सम्प्रदायना महन्त दिलसुद्धरामजीने (इन्द्रप्रस्थ) दिल्ही पधारखानू निमन्त्रण आपतो विज्ञप्तिपत्र - हस्तप्रत परथी वाचना : मुनि सुयशचन्द्रविजय गणि, सुजसचन्द्रविजय भावानुवाद-अर्थघटन-संशोधन : निरंजन राज्यगुरु विज्ञप्तिपत्र लेखननो प्रचार जैन सम्प्रदायनी आगवी देन छे. अन्य सम्प्रदायोमां आ जातना विज्ञप्तिपत्रो बहु जूज लखायेलां जोवा मळ्यां छे. जो के अनी पाछळ मुक्य बे कारण छे : (१) जैन सम्प्रदायमां चातुर्मास व्यवस्था होवाथी चातुर्मासनी विनन्ती करवा माटे अथवा तो क्षमापन कराववा माटे पत्रो लखाता, तेवू कोई विशेष पत्रलेखननुं कारण जैनेतर सम्प्रदायमा प्रायः नथी. (२) जेटला प्रमाणमां जैन सम्प्रदायना हस्तलिखित ग्रन्थो आजे पण जैन सम्प्रदायना भण्डारो तथा ग्रन्थालयोमां सचवायेला मळे छे तेटला प्रमाणमां जैनेतर सम्प्रदायोना भण्डारोमां साहित्य सचवायेलुं जोवा नथी मळतं. छतां भारतमां विधविध प्रान्तोमां विविध धर्म/ पन्थ/सम्प्रदायोनां मन्दिरो, मठो, आश्रमो तथा सन्त/भक्त/कविओनी अनेक जग्याओ द्वारा प्रकाशित थयेलुं अने अप्रकाशित पडेलुं साहित्य हजु संशोधकोनी नजरे नथी चड्युं, घणी जग्याओमां सन्तोनुं अमूल्य साहित्यधन हस्तप्रतो रूपे आजे पण पेटीपटाराओमां सचवाईने ऊधई तथा उन्दरोना मुखथी क्षीण थतुं आ लखनारे निहाळ्युं छे.. जेनो कशो ये उपयोग थतो नथी, अनी उपयोगिता पण जग्याओना पदाधिकारी महन्तो नथी जाणता, अवा अमूला साहित्यधनने प्रकाशमां लाववा, दरेक सन्तकविना जीवन अने कवन विशे, अनी परम्परा विशे तथा जग्या-सन्तस्थानना इतिहास विशे प्रमाणभूत सामग्री अकत्र करवानी खास जरूर आ संशोधन, निरीक्षण अने परीक्षणना युगमां, ओक साहित्य-संशोधक तरीके मने लागे छे. आपणे त्यांना अनें छेक विदेशी ग्रन्थालयोमांना हस्तप्रत भण्डारोमां सचवायेली तमाम जैनेतर हस्तप्रतोमा जळवायेली सामग्रीनी सम्पूर्ण प्रमाणभूत-सर्वाङ्ग सूचिओ पण प्राप्य नथी. अनेक हस्तप्रत-भण्डारोनी प्रकाशित सूचिओमां 'गूटको', 'पदसंग्रह', 'विविध कविओनां पदो-कीर्तनो' जेवां शीर्षकोथी हस्तप्रत-नोंधणी थई छे. पण अमांनी सामग्री विशेनी जाणकारी नथी मळती. अमांये जे हस्तप्रतोमां कशो ज समयनिर्देश प्राप्त नथी थतो ओवी तो सेंकडो हस्तप्रतोमां छूटक-गौण कविओ
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy