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________________ ७४ अनुसन्धान-६९ जे नरनारी साथीं लेय, नयर उजेणी चालुं तेय; आवी भेट्यो जयसिंघ राय, मातपितानइ लागो पाय... १०७ रिधि देखी रंज्यो भूपाल, भाग्यवंत मोटो सुविसाल; राजकुमरि अणी परणी घणी, आण वरतावी जग आपणी... १०८ सारी विद्या पाम्या बहू, देस विदेसें जाणइ सहू; . . राय पूछई पहिलं वृतंत, भंजइ कुमर मननी भ्रंत... १०९ मइ जे नगटी कीधी देव, तेह वात तं सुणो संषेव; रिध विस्तरिउ कह्यो सरूप, हियडइ हरख्यो जयसिंघ भूप... ११० तव तेड्यो आपणुं प्रधान, राई तेहनई दीधुं मान; हुं अवचारी पाटो सही, सास्त्र वात कांई जोई नही... १११ दसरथपुर- पालइ राज, पुनें सीधा सघला काज; पून करी सव टलीया अली, मनवांछित सुखसंपद मिली... ११२ ॥ दूहा ॥ राज देई कुमारनइं, लीओ चारित्र उदार; संजम पाली निरमलुं, गयुं स्वापुरि बार... ११३, गजसिंघ भूपतिनी चरीत, मइ कहुं संखेव, भणइ गुणइ जे सांभलइ, सुख संपत्ति लहइ हेव... ११४ ॥ चउपइ ॥ सहि गुरु तणा वयण मन धरी, बोल्युं गजसिंघनुं चरीत, जे नर जग इम पुन्य करंति, सुंदर राज तेह नर पामंति... ११५ - ॥ इति श्रीगजसिंघकुमार चतुःखण्ड चतुष्पदी सम्पूर्णं ।। लिखितं पूज्य ऋषिश्री सुभटाख्येनाऽनुचर मनहरऋषीणा लिपीकृता पठनार्थं श्री युगप्रधानजी पूज्य ऋषिश्री धनराजजी तस्य सेवक ऋषिश्री श्रीपति अभिधानेन लिखतं धाइठा नगर मध्ये संवत १७०८ वर्षे अश्वन विदि १३ भोम दिने सिधयोगे लिखितं परोपगाराय लेखकपाठकयोश्चिरं नंद्यात् । शुभं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु || * * *
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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