SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्च - २०१६ ७७ मुजब क्रमांको अपाया छे. ओ मुजब १२० मुं पद्य "बतीसांमैं धुर अखिर, ता आगैं सत बीस, पांण सहत ईकबीसमैं, रखीयो बिसबाबीस..." कदाच कडी संख्यानो निर्देश करतुं होवा छतां अ संकेतो मुजब गणतरी करी शकाती नथी. अ ज प्रमाणे ५३मां पद्यमां "धुर अक्षर तुक सप्तकी तिन चरणनकी मैं सरनी..." पण संकेतात्मक निर्देश थयो छे. धुर अखिर / धुर अक्षर ते दोहा ओटले के बे पंक्तिना पद्यो माटे वपरायो होवानी सम्भावना करी शकाय. अ मुजब सातमा क्रमना दुहामां सतगुरुनी वन्दना “हरि सूं गुरु बसेषता, कैसै जाणी जाई, हरि बान्धे गुण तीनमैं, सतगुरु लेत छुडाई". आ रीते थई छे. (तेनुं हुं शरण लउं छं ओवो भाव जणाय छे). तो ११९मा पद्यमां आवता अंकनिर्देशक शब्दो " दिसा आदि काली अन्त हु चितवो परम - क्रिपाल, अमरावसिंहकी बीनती पांवन करो दयाल..." कदाच दश दिशा, आदि ओक, काळ त्रण, अन्त शून्य जेवां अर्थघटन तरफ दोरी जाय छे पण कशुं स्पष्ट करी शकातुं नथी. 'आनां जाद गुलाम / षानां जाद गुलाम /खानां जाद गुलाम' शब्द बे वखत (३ / १२३, ६ / १२६) वपरायो छे जेनो अर्थ 'जे मात्र खाधाखोराकी लईने सेवा करे छे तेवो सेवक के गुलाम' ओम थई शके. " २६ चोपाई, ५१ दुहा, १० कवित, ४ सोरठा, १ निशाणी, १४ भुजंगी, ३ मनहर, ८ कुंडळिया, ५ पध्धरिं १ सवैया, २ झूलणा, २ वचनिका, ६ छन्द बेताल मळी कूल १३३ पद्यो थाय छे. प्रस्तुत विज्ञप्तिपत्रमांथी जैनेतर ओवा रामसनेही सम्प्रदाय विशे जे ऐतिहासिक माहिती अने साधुजनोनी नामावलि मळे छे ते विशे सन्तसाहित्यना विविध ग्रन्थोमां संशोधन करतां नीचे मुजबनी माहिती प्राप्त थई छे. जेमां आचार्य परशुराम चतुर्वेदी द्वारा लखायेला ग्रन्थ 'उत्तरी भारत की सन्त परम्परा' (प्रका. भारती भण्डार, ईलाहाबाद, आ.३, ई.स. १९७२, पृ. ६६३ थी ६८६), उपरांत 'राजस्थानी साहित्यना इतिहासनी रूपरेखा' (हीरालाल माहेश्वरी, गुजराती अनुवाद उपेन्द्र पण्ड्या, साहित्य अकादेमी, दिल्ही, आ. १, १९८४), 'राजस्थान की भक्तिपरम्परा अवं संस्कृति' (दिनेशचन्द्र शुक्ल, ओंकारनारायणसिंह, प्रका. राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर, १९९६), 'श्रीरामस्नेही सम्प्रदाय' (केवऴस्वामी, बिकानेर, १९५९), 'रामस्नेहीसम्प्रदाय' (त्रिपाठी राधिकाप्रसाद, फैजाबाद, १९७३), 'रामस्नेही सम्प्रदाय की दार्शनिक पृष्ठभूमि' (शिवशंकर पाण्डे - दिल्ही.) जेवा ग्रन्थोमांथी सन्दर्भे लीधा छे.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy