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________________ ५४ अनुसन्धान-६९ सा जीती गणिका जगि सूरी, इम चउमासी करई मुनि पूरी । जय-जस-वाद वरी गुण भूरी, वांदई श्रीगुरु आवि सनूरी ॥१३२।। ॥ दूहा ॥ गुरु निरखी हरखी भणइं, "आवउ दुःकरकार" । वलि वलि दुःकर उच्चरई, कोपई अवर अपार ॥१३३।। विषमी ठामि अम्हे रह्या, नवि लीधुं अम्ह नाम । चतुरपणुं गुरुर्नु लहुँ, द्यइं एहनई बहुमान ॥१३४|| "ए दोहिलुं सहस्युं अम्हे, द्यउ मुझनइं आदेस" । गुरुर्नु वचन लही करी, पुहता कोसि-निवेस ॥१३५।। ॥ ढाल - ११ ॥ गणिका निरखीय वात विमासी, आव्या मुनिवर एह चउमासी । जोवा भाव कहइं सुविसासी, "अम्ह छई रतन-सुकंबल-आसी" ||१३६।। मुनिवर राग धरी तव चालई, पुहतउ दुरगम देस नेपालई । तिहां राजा रिषि-वंछित आलइं, कोरीय दंड सुकंबल घालई ॥१३७॥ वरसालई जल-चीखल-पंथा, चंचल चरण चलइं जिम मंथा । अति घण ताढि न ओढण कंथा, आवई इणि परि सोई निर्ग्रथा ॥१३८|| जव आपइं मुनि सा तिणि ता लई, नांखइं अंग लूही निय खालइं । तव बोलई मुनि "कां न संभालई, तई गमीउं मणि-कंबल आलइं" ॥१३९।। "रे रिषि! मरख! आप न जोवई, काग ऊडावणि माणिक खोवइं । कंबल-सम तुम्ह संयम होवई, ते तुं अम्ह वसि कांई विगोवइं" ॥१४०॥ वचन सुणी मुनि मारगि आवई, मनि लाजी निय पाप खमावइं । तुं मुझ तारणनारि सुहावई, थूलिभद्रना गुण वलि वलि गावइं ॥१४१।। लही प्रतिबोध चलई रिषिराया, कही वरतंत नमई गुरु-पाया । नियमुखि थूलिभद्र सुजस ज गाया, बइंसई सीहतणी कुण छाया (?) ॥१४२।। ए मुनिराय महाब्रह्मचारी, सहवासी गणिका जिणि तारी । सहजरतन्न कहई सुविचारी, ए सम कोइ नहीं उपगारी ॥१४३।। श्रीसिगडाल-सुनागर-तोकं, श्रीजिन-शासन-भाण-विरोकं । पालीय सील गया सुर-लोकं, नमत जनाः खलु तं गत-शोकं ॥१४४॥
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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