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________________ मार्च - २०१६ मुनि जाणइं गणिका तरई, तउ अम्ह शासनि-सोह । सा जाणइं मुनिवरपणुं, छंडा, करि मोह ॥११९॥ ॥ ढाल - १० ॥ घण दिवसे प्रियुडउ घरि आयउ, सुंदरिनई मनि हरख न मायउ । मिलीय सखी मुखि मंगल गायउ, कुंकुम रोलि दिगंतर छायउ ॥१२०॥ रचि मंडाण करई उपचारा, योगतणा अम्हस्युं नहीं चारा । जे करता फल-पत्र-अहारा, ते अम्ह देखि हूआ सविकारा ॥१२१।। चिंतवि एम सुनाटिक मंडई, हाव धरी नरनां मन खंडई । खटकति मेखल चीर न छंडई, लटकति गोफण वेणीय-दंडई ॥१२२।। तंतीय ताल रबाब सुनादं, भरहर-भुंगल छंदि दवादं(?) । मद्दल वीण सुवंसलि सादं, जाऽनुकरइ सुर-दुंदुभि-वादं ॥१२३।। चतुरपणई चरणा ठमकावई, घूघरि तान धरी घमकावइं । झेंझें झांझर सां झमकावई, नाचति सा धरणी द्रमकावई ॥१२४|| गावति नारि मुनि-मुख जोवई, रिखि जंपई “हिव किंपि न होवई । तुं घृत-काजि सु नीर विलोवई, भोलीय तुं निय नर-भव खोवई ॥१२५।। नवि थाउं हिवं हुं तुझ नाथा, तई दीधी मुझ बाउलि बाथा । संभलि धरमतणी हिव गाथा, तुं पामई जिम सिव-पुरि-साथा ॥१२६।। ए संसार-सरूप मई दीर्छ, हिव लागई मुझ अतिहि अनीठं । विषय-सवाद सु अंति न मीठं, बालई अंग ज्युं आगि अंगीठं ॥१२७|| आ काया मल-मूत्र-निदानं, देखीय राग धरई गत-सानं । दीसइं भोग-सुखं अणु-मानं, भोगवतां दुःख मेरु-समानं ॥१२८॥ ए भव-सायर दुःख अगाध, वेदन गरभतणी घण बाधं । करीय कुकर्म सुजीव-विरोधं, सहवं नरगि सुदुःख स(आ)बाधं" ॥१२९।। मुनिवर-वचन सुणी मनि बीन्ही, काँचा कुंभतणी परि भीनी । बोलई धर्मतणइं गुणि लीनी, 'हिव टालउं(तारउं?) मुझनई दुख-दीनी ॥१३०।। तव हरखी रिषि धरम सुणावई, श्रीजिन-धरमनां सूत्र भणावई । सूधां श्रावकनां व्रत पालई, नर-भव पर-भव सा अजुआलइ ॥१३१॥
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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