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________________ मार्च - २०१६ ॥ ढाल - ६ ॥ वचन सुणी तिणि वात विचारी, ए नव-योवन दीसइं नारी । सरखीय जोडि मिली सुखकारी, भोग-विलास करई नर-नारी ॥६८।। घई मंत्री सुतनइं धन जोडी, साढीय बारस सोवन-कोडी । मदिमाती नव-योवन जोडी, रंगि रमई प्रियस्युं मद मोडी ॥६९।। जिहां छई ऊंचीय मंदिर-माला, सोहई चिहुं दिसि चित्रित साला । आरोपी गलि चंपक-माला, प्रियस्युं सेजि चढी सा बाला ॥७०|| नेहई नेह मिल्यउ छई तुझस्युं, तुं विरतउ म म थाइसि मुझस्युं । मदन-सरोवर नेहई भरस्युं, हंसी-हंस मिली रंगि रमस्युं ॥७१।। घन-कुच-परबत-मांन विहंडी, अमृत-पांन करइंऽधर खंडी । भोगतणां सुभ आसण मंडी, मोडइं अंग ज्यु पंकज-दंडी ॥७२।। प्रिय-पुंतार महा-मदि आया, कुच-कुंभई नख-अंकुस लाया । पीडीय अंगसु काम जगाया, योवन-हाथीय हारि मनाया ॥७३।। कामतणई रसि कोश्या प्रीणी, मुखि बोलई मधुर-स्वरि झीणी । किसीय कहुं प्रियडा तुझ करणी, हुं जग-धूरत कीधी घरणी ॥७४|| जिम रवि-पंकज मेह-मयूरा, जिम जल-मीन सुचंद-चकोरा । तिम तुमस्युं मुझ नेह अपारा, इणि भवि तुं नर मुझ भरतारा ॥७५।। इणि परि सरस विनोद करती, सा समदा प्रिय साथि रमंती । आपणपुं धन धन्न मुणंती, बारह वरस गमई गुणवंती ॥७६।। ॥ दूहा ॥ इहां इम ए सुख भोगवई, हिव पूरव वरतंत । लघु-बंधव थूलिभद्रनउ, सिरीओ अति गुणवंत ॥७७।। अनुक्रर्मि एकल-संथुई, बहिन सात मतिवंत । तिणि इक पंडित अवगण्यङ, अवर करइं तव तंत ॥७८।। गंगा-तटि बुद्धिं करी, काढई सोवन-द्राम । महितउ परमारथ लही, पाडइं पंडित-माम ॥७९।। सूतउ सीह जगाडीओ, प्रगटी पंडित-भर्ने । तव पंडित रूठउ घj, दूहउ लिखइ समर्म ||८०||
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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