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अनुसन्धान-६९
जे नर कोढीय विगत-मनीषा, नीरस अंग कराल-करीषा । उत्तम-अधम न जाणउ परीखा, तुम्ह मनि माणिक-काच सिरीखा ॥५५॥ लख-पुरुषइं तुम्ह नहीय संतोषा, अवर अनेक अछइं तुम्ह दोषा" । एहवी वांणि सुणी पण-जोषा, वलतुं वचन वदई घण-रोषा ॥५६॥ "तई अम्ह जातिसु ओछिप माडी, अवगुण कोडि-गमे ऊघाडी । सवि सरिखी किम कोसि-भवाडी, तुं गुणवंत करई पर-चाडी ॥५७॥ कहइं गुणिका तुझ संग सुहाई, करतां वाद घणो कलि थाइं । अवसर एह न छंड्यउ जाई, आव्यउ बोल हियइं न समाइं ॥५८।। कुलवंती बहू कूड करंता, परदेसी हण्यउ सूरीयकंता । चुलणी सुंदर नंदन हंता, तउहई कोइ न छंडई कंता ॥५९॥ परणंतां कही नारि सुहेली, पिण निरवहतां अतिहिं सु(दु?)हेली । मागई नव नव वेस सहेली, नव जाणई घर-सूत्र गहेली ॥६०॥ जव निय-नाह रली घरि आवइं, ऊभीय उंबरि कोरडि चावई । बोलई बरबीय बाँह हलावई, तुं घरि तूंणि किसी नवि ल्यावइं ॥६१।। घरि नहीं तेल न भात न दाली, नहिं मिरी लूण नई धणडाली । स्युं आव्या घरि घइं मुखि गाली, जा तुं पापीय पाछउ हाली ॥६२॥
॥ दूहा ॥
एहवी नीलज कुल-वहू, नहिं हियडई सुविवेक । पिण परणी नवि छंडीइं, जई रमई पुरुष अनेक ॥६३|| अम्ह घरि ए बंधन नही, निगरथ ऊठी जाई । कुलवंती असती घणी, पुण अम्ह कलंक दिवाइ ॥६४॥ सूरिज ऊगई पश्चिमई, हू छंडई निय ठाय । जई निरविष नव नाग-कुल, नवि छंडं तुज पाय" ॥६५।। नारी विसमी वागुरा, चिंति करी सुविलास । उदयसागर मुनिवर कहई, पाडइं नर-मृग पासि ॥६६।। वात एक साची सुणउ, सुगुणा सुगुण मिलंति । मकरंद मन मान(ल)तई, हंसा कमलि वसंति ॥६७||