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मार्च
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२०१६
नाच सुंदर पात्र सुरंगा, चचपट संपुट ताल तरंगा ।
तत्तत थेईय घन गिनि थुंगा, द्यई भमरी विचि मोडीय अंगा ॥१६॥ धुधुकटि ट्रेंकटि मद्दल वज्जइं, वीणा वंस विचित्र सुसज्ज । सरिगम मपधनि सुसरति वज्जई, राग करी सवि जन मन रंजई ॥१७॥ सवि सिंगार समान रचावी, विविधपरिं इम पात्र नचावी ।
द्यइं मन-वंछित दान मनावी, नवि मूंक्या कोई ललचावी ॥१८॥ भोजन पाडलीपुर जन पोषई, श्रीफल पान देई संतोषई । चिर जीवउ सुत इम मुखि गोखइं, थूलिभद्र नाम ठव्युं चिति चोखई ॥ १९॥ सुत वाधई घरि सुख विलसंतउ, हसत मुखउ चालई चमकंतउ । सिरि सोहई छोगो लटकंतो, चटकंतउ खिण मुखि ठणकंतउ ||२०|| घूघरडी पगि घमघमकंतउ, चंचल चतुर चलई रणकं । खींखंत पुहवी - तलि पडतउ, मात धवारीय राखि रडतउ ||२१| कोमल कमलतणी पांखडली, अणीयाली आंजी आंखडली | पहिरीय सोवननी करि कडली, अंगुलि रतन जडी वांकडली ॥२२॥ माता वलि वलि रूप निहालई, फूलतणी परिं पुत्र संसा (भा) लई । वरिसे पंचे ठव्यउ नेसालई, विद्या चउद भणी गुरु- सालई ॥ २३॥
॥ दूहा ॥
लिखित पठित जाणई कला, आगम अरथ अनेक । भणी - गुणी मोटर थयउ, जोवन - वय अतिरेक ||२४|| बालपणा सरिखुं भलुं, एणि नहीं संसारि ।
जब जोवन-मद उपजई, तव पर - वसि नर-नारि ॥२५॥ तेह ज नर-नारी पवर, बालक मूढ हवंति । जव जोवन - पंडित मिलई, मूरख चतुर करंति ॥२६॥
४५
॥ ढाल
३ ॥
जोवन वेसि हूओ मन रागी, बहुली मदनतणी मति जागी, विचरई नगर जुई हरिणाखी,
भोग पुरंदर रूप सोभागी । माया नारितणी मनि लागी ||२७|| वेधक वेध करई मुखि भाखी । रूपइं मदनतणउ सुभ साखी, नव-रस- सरसतणउ नर चाखी ॥ २८ ॥
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