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अनुसन्धान-६९
सह को लाभ घणउ दीय[इ] रइ, जीवदया प्रतिपाल सकत० म्हां तइ श्री मल लेख पठावियउ रइ, बाजुजी(?) वड्गा पधार सकत० इण अर दुसम चमइ रइ, जिन मोटी करणी कीध
सकत० श्रावक नित पोसा करइ रइ, श्रावकणी वहइ उपधान . सकत० समत सोल चउरासीय रइ, गायउ विकानइरइ .. सकत० पूरांजी री सीखणी भणइ रइ, भगतांजी खरी जगीस सकत मुन वंदस्य रइ, म्हारूइ हिडलइ हर्ष अपार
उरउ दीन दीन चढतउ प्रणाम इती ऋषजी सकत मुनीसर गीत संपूर्ण समापत् । साधवी पूरांजी तत सीखणी कपूरां लिखते ।
सकत०
(सुधारेलु) श्री शांति जिणेसर पाय नमु रे, हुं मायूँ एक पसाय सकत मुनि वंदस्युं रे, माहरा हियडे हरख अपार धरउ दिन-दिन चढतां परिणाम रे, सकति मुनि वंदस्युं रे श्री पासचंद गच्छ दीपतां रे, श्री समरचंद सूरिंद
सकत० २ श्री राजचंद सूरि गुण भर्या रे, श्री विमलचंद सुखकार सकत० ३ श्री जयचंद सूरि गुरु राजीया रे, जेहनो अधिक प्रताप सकत० ४ बालपणे वइरागीया रे, मांगे ही अनुमति सार
सकत० ५ ले अनुमति चारित्र लियउ रे, ऋषि जयतसीजी रे पास सकत० ६ जोधासा कुल मंडणा रे, जयवंतदे कुख रतन
सकत० ७ गाम नगर पुर विचरतां रे, आव्या बीकानयर
सकत० ८ चैत्र वद दसम अणसण लीयउ रे, मिलीयउ चतुर्विध संघ सकत० ९ हरजी ऋषी पूरांजी वीनवे रे, सकत ऋषि द्यउ बहुमान सकत० १० श्री संघ वलीवली वीनवे रे, तुम्हे वांचउ सूत्र सिद्धांत सकत० ११ गाम नगर पुर वीचरजो रे, लेज्यो लाभ अनंत
सकत० १२ चउरासी गछ महिमा करेइ रे, वरतावी आण रे (?) सकत० १३