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________________ मार्च २०१६ वसुधापुर वसतां थकां संभली सद्गुरु वाणी रे; संयम लीधउ मन रुचि, अथिर संसार ते जाणी रे. पंच महाव्रत आदरी, वारी विषय विकारो रे; चारित्र पालइ अति भलउ, जाणिक खं[खां]डा धारो रे. सगत ०४ ज्ञान-ध्यान लीनउ सदा, अरिहंतसउं चित लाइ रे; सुगति तणी करइ साधना, उत्तम नरभव पाइ रे. बिकानयर विचरता, आव्या ते ऋषिराजो रे; बासठि दिन अणसण करी, साधइ आतम काजो रे. कपूरांबाइ कहण करी, मई कीधी ए भासो रे; ते ऋषि ठाकुर सुखीयउ सदा, पामइ वंछित आसो रे. सगत ०७ इति श्रीसगत मुनिसर गीत । २. श्रीसकतमुनि गीत श्री संति जिणेसर पाय नमु रइ, हं मांगं एक पसाव सकत मुन वंदस्य रइ, म्हारूइ हिडलइ हरख अपार धर(?)उं दिन दिनं चढतउ प्रणाम, सकत मुन वंदस्यं रइ श्री पासचंद गछ दीपता रइ, श्री समरूचंद सू[रिं] द श्री राजचंद सूरू गुण भर्या रइ, श्रीविमलचंद सूखकार . श्री जयचंद सूरू गुरू राजीया रइ, जेहनउ अधिक प्रताप बालपणइ वइरागीया रइ, मांगई ह (र) इ उनमत सार ले उनमति चात्र लियउ रइ, ऋषि जयत्तसीजी रइ पास जोधासा कुल मंडणा रइ, जयवंत दे कुख रतन गांमां-नगर-पुर विचरता रइ, आव्या वीकानइर सगत ०३ सगत ०५ सगत ०६ चइतु वद दंसम अंणसांण लियउ रइ, मिलीयउ चित्रविध संघ हरजी ऋष पूरांजी वीनवइ रइ, सकत ऋष द्यउ हुं मान श्री संघ वलवल वीनवइ र, तुम्हे वाचउ सूत्र सीद्धंति गामागर पुर वीचरजो रइ, लेज्यो लाभ अनंत चउरासी गछ म्हमा कर[इ] रइ, वरतावी आंबार ३९ सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत० सकत०
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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