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अनुसन्धान-६९
खिणु उपदेस तिहां प्रभु दीनो, अचरजु तिहां प्रभु लाभिंई छीनो । दश दो जोयण निशि चलिआ ए, पगडिइ माझि अपापा पाए ॥७॥ समवसरणि बेइठ सुरि कीनो, राजति जइसो मुगटि नगीनो । धर्म सुणि भविजन जिन लीनो, जाणति सर्वणि अंमृत पीनो ||८|| दुंदही वाजइ मधुरउ तीनो, अभविक मुगसेलु नही भीनो । . वात चली आयु सबबंदी, भव अणंतका संसय छेदी ॥९॥ सुरविमाण अंबरिथी आवइ, यगेनिवाड छोडी सब जावइ । गौतममुख माहण सबु खीजइ, सुर स्यूं कोप कीइं स्यालीजइ ॥१०॥ एणि जिनि जाणपणुं हम छीजइ, ऊठी चलउ ऊसैपति पाडीजइ(?) । . चउँच्याला शत माहण मिलीआ, उसमांथी धुरि गोतम चलीआ ॥११॥ छोत विविध बोलइ बरुदाली, जिनरिधि देखि चली पगि खोली । हा! अविचार करी हुं आयु, अब क्युं जावति आप छपायु ॥१२॥ तब मधुरी झुणि सांइ बोलायु, इंदभूति गोयम सुखि आयु ? । चमकिउ क्युं मो नामिणिइ जाणिउ, बूझू हुं छू तिजग-पिछाणिउ ॥१३|| उ सब जाणपणुं तउ छाजइ, जु मुझ चित्तकु संसय भाजइ । तब तिभुवणकउ राजा बोलइ, तीन भुवन हरखि शिर डोलइ ॥१४॥ मुझ तुझ गोयम संसय सूझइ, जीव नही................. ।
... एही पद जीवसत्ता दूझइ ॥१५॥ ढाल || आसाउरी ॥ रामगिरी अधरस देसाख ॥ वीर मधुरी वाणि बोलइ इंद्रभूति सुणो, वेदपद विपरीत म भणो । समउ अरथ सुणउ, वेदपद 'ददद' दमो दानं दया अरथ घणो ॥१६॥
वीर मधु० ॥ विज्ञानघन ऊपजी आपइं पंच भूत थकी । पंच भूत विणासि विणसइ इसी वेद फैकी ॥१७|| वीर० ॥ एणि पदि संसय पड्यो तुं इंद्रभूति सुणे । आ(अ)त्थि जीवो जाणि लख्यणि चेता(त)नादि गुणे ॥१८॥ वी० ॥ पुण्यपापहतणु भाजन जुरी जीव नही । तु किस्यानइं यागमुखं शुभ क्रिया तिंही कही ॥१९॥ वी० ॥