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अनुसन्धान-६९
श्रीअक्षयचन्द्र वाचक पर प्रेषित एक लेखपत्र
- सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
ओक नूतन उन्मेष धरावतो अने विज्ञप्तिपत्र - साहित्यमा अलग भात पाडतो न्यायचर्चाथी सभर पत्र अत्रे प्रकाशित थई रह्यो छे. पत्र कृष्णदुर्गथी लखायो छे अने विक्रमनगर(-बिकानेर) पहोंचाडायो छे. मूळ पत्रनी नकल करनार व्यक्ति द्वारा पत्र लखनार अने पत्र मेळवनार मुनिराजोनां नाम काढी नंखायां छे. नकल करायेला पत्रोमां आ ओक साधारणपणे जोवा मळती बाबत छे अने अनुसन्धानमां आवा अनेक पत्रो आ पूर्वे प्रकाशित थई चूक्या छे. जो के प्रस्तुत पत्रना. अन्ते वाचक श्री अक्षयचन्द्रजीनी प्रशंसा करतो श्लोक सचवायो होवाथी, पत्र तेमना पर ज लखायो हशे तेनुं अनुमान करी शकाय छे.
पत्रलेखके पत्रमां सौप्रथम गुरुतत्त्व अने धर्मतत्त्व, देवतत्त्व साथ सम्बन्धित होवाथी पूजनीय छे तथा सिद्ध भगवन्तो करतां परोपकृतिनी अपेक्षाओ अरिहन्त भगवन्तो वधु शक्तिसम्पन्न गणाय ते तर्कसरणिथी सिद्ध करी आप्युं छे.
त्यारबाद पूर्वपक्ष द्वारा ओक दीर्घ शङ्कानो उपन्यास थयो छे. समग्र शङ्कानो भाव से छे के तीर्थङ्करो जो सकलशक्तिसम्पन्न होय अने परोपकाररसिक होय तो अ आपण केम संसारनां दुःखोमांथी छोडावता नथी ? अने ओमनी शक्ति जो आपणो, अनार्योनो, नारकीना जीवोनो, निगोदनो - कोईनो पण उद्धार करवामां समर्थ न होय तो अमने 'परमेश्वर' केवी रीते गणाय ?
उत्तरपक्ष द्वारा आ शङ्कानुं न्यायोचित समाधान अपायुं छे के आपणी अपात्रताने लीधे ज तीर्थङ्करोनो पुरुषार्थ विफल बने छे. वास्तवमां तो अरिहन्त भगवन्तो कोईनी पण उपर सीधो उपकार नथी करी शकता. ए तो तरवाना छूटवाना उपायो देखाडे छे. जे ओ उपायोने अपनावे छे, ते तरी जाय छे. जे नथी अपनावता ते डूबी जाय छे. तीर्थङ्करोनुं कर्तृत्व अ खरेखर तो करणकर्तृत्वमां ज पर्यवसित थाय छे. तीर्थङ्करो तो मेघनी जेम बधे ज अकसरखी धर्मदेशनानी वृष्टि करे छे. पण कोईक, जवासानी जेम, ओ वृष्टिमां पण सूकाई जाय तेमां अ वृष्टि करनारनो शो दोष ?
अनार्य देशमां तीर्थङ्करो पोते न गया अने त्यां धर्मदेशना न आपी ते पण तेमनी परोपकारबुद्धि ज हती ते वात पण अत्रे सरस रीते समजावाई छे.