SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मार्च - २०१६ विषमव्याख्याकाव्यानि (क्रिया-कर्तृ-कर्मगुप्तानि) - सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय आ कृतिमां प्रहेलिका (उखाणां) प्रकारना विषम कही शकाय तेवा श्लोकोनो संग्रह करवामां आव्यो छे. कुल ३२ श्लोको छे. एमांथी प्रथम श्लोकना अर्धभागनी व्याख्या साथे ज आपेली छे, बीजा पण केटलाक श्लोकोना विषम शब्दोनो अर्थ टिप्पणी तरीके हांसियामां आप्यो छे. तो केटलाक श्लोको सभाषितरत्नभाण्डागार वगेरे सुभाषितसंग्रहोमां उपलब्ध होवाथी ते श्लोकोना विषम पदोनी टिप्पणी त्यांथी लईने मूकी छे. पण केटलाक श्लोको प्रायः कोई सुभाषितसंग्रहमां उपलब्ध नथीं थता अने अतिविषम छे, तेथी तेमनी व्याख्या/टिप्पणी मूकी शकाई नथी. संग्रहकर्तानुं नाम क्यांय उल्लिखित नथी.. प्रतिपरिचय : आ प्रति जोधपुर (राजस्थान)स्थित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानना संग्रहनी १७४८१/२ क्रमाङ्कित प्रति छे. अक्षरो सुवाच्य छे तथा लेखनशुद्धि सारी छे. पत्र १ छे. लेखन संवत् निर्देशायेल नथी छतां लिपि वगेरे जोतां विक्रमना १७मा सैकामां लखायेल होय तेवू अनुमानी शकाय. लिपिकारनो कोई उल्लेख करायो नथी. ॥ श्रीसर्वज्ञाय नमः ॥ खाटपाट-वृषभाट-नगारी-डाभ-डाभकर-वात-हुडाटाः । एतयाशु तव कीर्तिप तुष्टा, गामसीमसहितां प्रदिशन्तु ॥१॥ खे- आकाशे अटन्ति- चरन्ति खेटा:- पक्षिणः, तेषां पाति- रक्षति खाटपो- गरुडः, तेनाइटतीति खाटपाट:- कृष्णः; वृषभेणाऽटतीति वृषभाटईश्वरः; नगारि:- इन्द्रः; इडया भातीति इडाभश्चन्द्रः; डलयोरैक्ये लाभकरोविनायकः, हुडेन- मेषेण अटतीति हुडाटोऽग्निः ॥१॥ कान्तया कान्तसंयोगे, किमकारि नवोढया? । अत्राऽपि कथितं श्लोके, यो जानाति स पण्डितः ॥२॥ (अत्रापि)
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy