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________________ मार्च - २०१६ १६१ ज्ञानमां व्यभिचार सम्भवित छे. तेथी ज तो दरेक ज्ञानना ग्रहणनी साथे अना अप्रामाण्यनुं ज स्वाभाविक ग्रहण थाय छे, अने आपणने 'ज्ञान साचुं हशे के खोटुं' ओवो संशय जन्मे छे. पछी अना कारणगत गुणोनुं ज्ञान थाय अथवा ओ ज्ञानथी प्रवर्तेली अर्थक्रिया संवादी बने के ओ बोध आप्तवचनथी पण प्रमाणित थाय तो, अ स्वाभाविक जणायेला अप्रामाण्य निरसन थईने प्रामाण्य गृहीत थाय छे. अन्यथा अप्रामाण्यनो बोध जेमनो तेम टकी रहे छे. माटे अप्रामाण्य स्वतः (-स्वाभाविक) जणाय छे, परन्तु प्रामाण्य परतः (-अन्य ज्ञाननी अपेक्षाओ) गृहीत थाय छे. प्रामाण्यनिश्चय नहि, पण प्रामाण्यसंशय प्रवृत्तिनो जनक बनी शके छे ओ आ मतना स्वीकार पाछळनुं मुख्य आलम्बन जणाय छे. . __पाछळथी बौद्धोओ (कदाच आहेत मतना प्रभाव हेठळ) अनियमित पक्ष अङ्गीकार कर्यो होवा जणाय छे. ४. प्रामाण्य अने अप्रामाण्य बन्ने परतः - नैयायिको (अने समानंतन्त्र होवाने लीधे वैशेषिकोना पण) मते प्रामाण्य अने अप्रामाण्य बन्ने उत्पत्ति तेमज ज्ञप्ति बन्नेनी अपेक्षाओ परतः छे. उत्पत्तिमां परत: गणवानो मतलब ओ छे के ज्ञानसामान्यनी जनक सामग्रीथी ज्ञानसामान्य ज जन्मे छे. पण अमां यथार्थत्व-अयथार्थत्व- वैशिष्ट्य तो गुण-दोषने लीधे ज जन्मे छे.' दोषो अप्रामाण्यना जनक छे, ज्यारे गुणो प्रामाण्यना जनक छे.२ आशय ओ छे के आपणा बधा ज अनुभवो यथार्थ नथी होता तेनुं कारण छे के अनुभव उत्पन्न करनार जे कारणो छे, ते ज कारणो अनुभवगत यथार्थताना उत्पादक नथी. जो अनुभवने उत्पन्न करनार कारणो ज तद्गत यथार्थताने उत्पन्न करतां होत तो बधा ज अनुभवो यथार्थ उत्पन्न थात. पण अq नथी. तेथी समजी शकाय छे के अनुभवनी यथार्थता अनुभवनां कारणोथी जन्य नथी, परंतु कारणगत गुणोथी जन्य छे. ओ ज रीते अनुभवनी १. "उत्पत्तौ परतस्त्वं नाम ज्ञानकारणातिरिक्तकारणजन्यत्वम् ।", - प्रमाणचन्द्रिका - परि० १ २. "दोषोऽप्रमाया जनकः प्रमायास्तु गुणो भवेत् ।" - सिद्धान्तमुक्तावली - ३१
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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