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________________ १६० कुमारिल भट्ट - ज्ञान अतीन्द्रिय होवाथी स्वसंवेदन के मानस प्रत्यक्ष द्वारा अनुं ग्रहण थवुं शक्य नथी. पण ज्ञानथी जन्य ज्ञातताने लीधे लेना अस्तित्वनुं अनुमान करी शकाय छे. आ अनुमान द्वारा मूळ ज्ञानना ग्रहणनी साथे ते ज्ञाननिष्ठ प्रामाण्यनुं पण ग्रहण थई जाय छे. जेमके घडानुं ज्ञान लइओ तो, सौ प्रथम 'आ घडो छे' अवुं ज्ञान थाय छे. त्यारबाद 'घडो जणायो' अवुं मानस प्रत्यक्ष थाय छे. आ मानस प्रत्यक्ष द्वारा घटमां 'ज्ञातता' नामनो धर्म उत्पन्न थयो छे ओम जणाय छे. आ ज्ञातता द्वारा मूळ घटज्ञान अनुमित थाय छे के 'घटनिष्ठ ज्ञातता तो ज सम्भवे के जो घटनुं ज्ञान थयुं होय'. आ रीते घटज्ञाननो बोध थाय अ साथे घटज्ञाननिष्ठ प्रामाण्य पण जणाई ज जाय छे. तेथी अ मते पण स्वतः प्रामाण्य ज सम्भवे छे. १ वेदान्ती मत अन्तःकरणना परिणामरूप वृत्ति विषयाकार परिणाम धारण करे छे, त्यारे वृत्तिज्ञानात्मक प्रत्यक्षभान थाय छे. आ वृत्तिज्ञाननुं साक्षिज्ञान द्वारा ग्रहण थाय छे. अने आ ग्रहणनी साथे तन्निष्ठ प्रामाण्यनुं पण ग्रहण थाय छे. आम आ मते स्वतः प्रामाण्य ज सम्मत छे. - अनुसन्धान- ६९ आ रीते जोइओ तो ज्ञानप्रक्रिया विभिन्न होवा छतां ज्ञानगत प्रामाण्यनुं ज्ञानग्रहणनी साथे ज ग्रहण थाय से बाबतमां बधा ज स्वतः प्रामाण्यवादीओ एकमत छे. अने अ ज रीते अप्रामाण्य परत:- अन्यज्ञानथी सापेक्षपणे थाय ओ पण तेओ समानपणे ज स्वीकारे छे. ३. अप्रामाण्य स्वतः अने प्रामाण्य परत: उपरना मतथी ठीक ऊलटी वात बौद्धोना आ प्राचीन मतनी छे. आ मत माधवाचार्यना सर्वदर्शनसङ्ग्रह, श्चेरबात्स्कीना Buddhist Logic (p. 66 ) अने आचार्य नरेन्द्र देवना बौद्धधर्म-दर्शन (पृ. ५९१ ) पर उल्लिखित छे. आ मते सर्व - - - १. " भट्टास्तु ज्ञानं तावत् स्वविषये ज्ञातताख्यं फलं जनयति इति निरूढम् । तयैवाऽनुमेयं ज्ञानम् । तथा च ज्ञाततया ज्ञानानुमितिर्जायमाना प्रामाण्यमपि विषयीकरोति इत्याहुः ।" तर्कप्रकाशः (शितिकण्ठी) २. "स्वाश्रयः वृत्तिज्ञानम् । तद्ग्राहकं साक्षिज्ञानम् । तेन वृत्तिज्ञाने गृह्यमाणे तद्गतं प्रामाण्यम खण्ड ४ ज्ञायते ।" वेदान्तपरिभाषा - अनुप० परि० ३. जुओ, पृ. १५४ टि. १ -
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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