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अनुसन्धान- ६९
अयथार्थता पण अनुभवनां कारणोथी जन्य नथी, किन्तु कारणगत दोषोथी जन्य छे. आम, प्रामाण्य अने अप्रामाण्य बन्ने उत्पत्तिमां परत: छे.
हवे प्रश्न रहे छे कारणगत गुणोना अस्तित्व विशेनो. केटलाक दोषाभावने ज गुणो गणवाना पक्षमां छे, तो केटलाक अमने शब्दान्तरे कारणोनी स्वाभाविक अवस्था ज गणवाना मतना छे. आनी सामे नैयायिकोनुं कहेवुं छे के जेम चक्षुनी समलता, धातुनी विषमता, मननी अस्वस्थता व. दोषो छे, ओमनी स्वतन्त्र सत्ता छे; तो अनी माफक चक्षुनी निर्मळता, धातुनी समता, मननी स्वस्थता व गुणो पण छे ज, ओमनुं पण स्वतन्त्र अस्तित्व छे ज. ओमने दोषोना अभाव तरीके के कारणोनी स्वाभाविक अवस्था तरीके खपावी शकाय नहि. अन्यथा दोषो माटे पण गुणाभाव के कारणोनी स्वाभाविक अवस्था अम कही शकाय; अने अमनुं स्वतन्त्र अस्तित्व नकारी शकाय. ट्रंकमां, कारणोनी स्वाभाविक अवस्था ज्ञान- सामान्यनी जनक छे, तद्गत यथार्थता - अयथार्थतानी नहि. यथार्थता-अयथार्थता तो गुण-दोष सापेक्ष छे, माटे परतः छे.
प्रत्यक्षप्रमामां विशेषणवाळा विशेष्य साथेनो इन्द्रियसन्निकर्ष व., अनुमितिमां व्यापक स्थळे व्याप्तिप्रतिबद्ध व्याप्यनुं ज्ञान व., उपमितिमां यथार्थ सादृश्यनुं ज्ञान व., शाब्दबोधमां यथार्थ योग्यता अथवा तात्पर्यनुं ज्ञान व. गुंणो छे.' अने आ बधानो अभाव के विपरीतपणुं अ दोषो छे.
हवे ज्ञप्तिमां प्रामाण्य - अप्रामाण्यना परतस्त्व विशे विचार करीओ. आनो अर्थ से थाय छे के ज्ञानना ग्रहण साथे ज तद्गत प्रामाण्य- अप्रामाण्यनुं ग्रहण नथी थतुं, पण ते पछी अन्य ज्ञानथी सापेक्षपणे थाय छे.
आशय से छे के अनुभव थया पछी आपणे अनुभवने आधारे प्रवृत्ति करीओ छीओ. ते प्रवृत्ति जो सफळ थाय छे तो आपणने भान थाय छे के आपणने थयेलो अनुभव यथार्थ हतो. अने जो प्रवृत्ति सफळ नथी थती तो आपणने भान थाय छे के आपणने थयेलो अनुभव अयथार्थ हतो. दा.त. आपणे दूरथी पाणी जोयुं अने पाणी लेवा त्यां गया. परन्तु त्यां पाणी तो हतुं नहि. माटे आपणी प्रवृत्ति विफल थई अने आपणने ख्याल आव्यो के अ प्रवृत्ति जेना आधारे थई हती ते अनुभव अयथार्थ हतो. परन्तु जो प्रवृत्ति १. जुओ न्यायसिद्धान्तमञ्जरीप्रकाशः ४
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