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मार्च - २०१६
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तत्त्वबोधप्रवेशिका-१ प्रामाण्यवाद
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
[श्रीसिद्धसेन दिवाकर विरचित सन्मतितर्कप्रकरण तथा तेना पर न्यायपञ्चानन श्रीअभयदेवसूरिजी (लगभग विक्रमनो दसमो सैको) रचित तत्त्वबोधविधायिनी वृत्तिना अध्ययन दरमियान ख्याल आव्यो के वृत्तिमा समाविष्ट अनेक चर्चाओ. तेमनी तर्क-प्रतितर्कनी प्रमाणमां अजाणी परिपाटी, दुरूह विकल्पजाळ, पाण्डित्यपूर्ण शैली व.ने लीधे विद्यार्थीओ माटे दुर्गम बने तेवी छे. तेमां पण खण्डन-मण्डननी सुविस्तृत प्रक्रिया आ मुश्केलीमां वधारो करी शके तेम छे. तेथी आ चर्चाओमांथी आ बधुं गाळी नांखीने, चर्चा- मूळभूत हार्द जो सरळ शैलीमां सक्षिप्त रीते रजू करवामां आवे तेमज साथे थोडाक तुलनात्मक सन्दर्भो पण पूरा पाडवामां आवे तो ओ रजूआत विद्यार्थीओ माटे उपयोगी अने रसप्रद बनी शके. आ भावनाथी प्रेराईने आवा प्रकारनां लखाणोनी ओक श्रेणी करवानो विचार आव्यो. आ विचार अनुसार आ वखते वृत्तिमां सौ प्रथम वणित प्रामाण्यवादनी चर्चा रजू करी छे.]
आपणने थता सघळाय अनुभवो मात्र यथार्थ के मात्र अयथार्थ नथी होता अने ओ अनुभवगत यथार्थता-अयथार्थतानु भान पण आपणने प्राय: थतुं होय छे, ओ ओक अनुभवसिद्ध हकीकत छे अने सर्व दर्शनोने ओ वात सम्मत पण छे.१ प्रश्नो ओ ऊठे छे के ज्ञानगत यथार्थता-अयथार्थता (प्रामाण्यअप्रामाण्य) नक्की कोण करी आपे छे ? ओनो निश्चय कई रीते थतो होय छे ? ज्ञान स्वप्रकाशक छे अम स्वीकारनाराओना मते, ज्ञान ज्यारे पोते ज पोताने जणावे त्यारे, अनी साथे, पोताना प्रामाण्य-अप्रामाण्यने पण जणावे
१. अकमात्र मीमांसक प्रभाकरना मते अयथार्थ ज्ञान होतुं ज नथी, सर्व ज्ञानो प्रमाणात्मक
ज होय छे. पण स्मृतिप्रमोष, भेदाग्रह के विवेकाख्यातिनी प्रक्रिया वर्णवीने भ्रमात्मक
ज्ञाननी सङ्गति तो तेओ पण करे ज छे. २. जैन, सौत्रान्तिक बौद्ध, योगाचार बौद्ध, प्रभाकर (मीमांसक), शङ्कराचार्य व.ना मते
ज्ञान स्वप्रकाश होय छे. तेथी स्वसंवेदन द्वारा अनुं ग्रहण थाय छे.