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________________ मार्च - २०१६ १५१ तत्त्वबोधप्रवेशिका-१ प्रामाण्यवाद - मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय [श्रीसिद्धसेन दिवाकर विरचित सन्मतितर्कप्रकरण तथा तेना पर न्यायपञ्चानन श्रीअभयदेवसूरिजी (लगभग विक्रमनो दसमो सैको) रचित तत्त्वबोधविधायिनी वृत्तिना अध्ययन दरमियान ख्याल आव्यो के वृत्तिमा समाविष्ट अनेक चर्चाओ. तेमनी तर्क-प्रतितर्कनी प्रमाणमां अजाणी परिपाटी, दुरूह विकल्पजाळ, पाण्डित्यपूर्ण शैली व.ने लीधे विद्यार्थीओ माटे दुर्गम बने तेवी छे. तेमां पण खण्डन-मण्डननी सुविस्तृत प्रक्रिया आ मुश्केलीमां वधारो करी शके तेम छे. तेथी आ चर्चाओमांथी आ बधुं गाळी नांखीने, चर्चा- मूळभूत हार्द जो सरळ शैलीमां सक्षिप्त रीते रजू करवामां आवे तेमज साथे थोडाक तुलनात्मक सन्दर्भो पण पूरा पाडवामां आवे तो ओ रजूआत विद्यार्थीओ माटे उपयोगी अने रसप्रद बनी शके. आ भावनाथी प्रेराईने आवा प्रकारनां लखाणोनी ओक श्रेणी करवानो विचार आव्यो. आ विचार अनुसार आ वखते वृत्तिमां सौ प्रथम वणित प्रामाण्यवादनी चर्चा रजू करी छे.] आपणने थता सघळाय अनुभवो मात्र यथार्थ के मात्र अयथार्थ नथी होता अने ओ अनुभवगत यथार्थता-अयथार्थतानु भान पण आपणने प्राय: थतुं होय छे, ओ ओक अनुभवसिद्ध हकीकत छे अने सर्व दर्शनोने ओ वात सम्मत पण छे.१ प्रश्नो ओ ऊठे छे के ज्ञानगत यथार्थता-अयथार्थता (प्रामाण्यअप्रामाण्य) नक्की कोण करी आपे छे ? ओनो निश्चय कई रीते थतो होय छे ? ज्ञान स्वप्रकाशक छे अम स्वीकारनाराओना मते, ज्ञान ज्यारे पोते ज पोताने जणावे त्यारे, अनी साथे, पोताना प्रामाण्य-अप्रामाण्यने पण जणावे १. अकमात्र मीमांसक प्रभाकरना मते अयथार्थ ज्ञान होतुं ज नथी, सर्व ज्ञानो प्रमाणात्मक ज होय छे. पण स्मृतिप्रमोष, भेदाग्रह के विवेकाख्यातिनी प्रक्रिया वर्णवीने भ्रमात्मक ज्ञाननी सङ्गति तो तेओ पण करे ज छे. २. जैन, सौत्रान्तिक बौद्ध, योगाचार बौद्ध, प्रभाकर (मीमांसक), शङ्कराचार्य व.ना मते ज्ञान स्वप्रकाश होय छे. तेथी स्वसंवेदन द्वारा अनुं ग्रहण थाय छे.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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