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________________ १५० अनुसन्धान-६९ खीमसीह-कारिअ भवण, तिहां नमीइ नमिनाह आगलि अंबिक-देहरी तु भमरुली, जोई लीजइ लाह ॥१८॥ इअ थुणीअ सुसावयदुहवण पावय, पावय गिरिवर सई धणीअ मझ मन अति चंचल जाण उं अविचल, अंचलवर वसही भणीअ ॥१९॥ हवई अंचलवसही भणीओ महालंतडे, पुहचीइ परबतें पंथि वीर जिणिद जुहारतां अ महालंतडे, छोडीइ करमनी ग्रंथि ॥२०॥ आगलि क्षपकवसहीइ ओ महालंतडे, जई जोई जिणरासि सीतल सीत-तलावली ओ महालंतडे, पेखीजइ तसु पासि ॥२१॥ जव आविउ गिरि-मोलीइ ओ महालंतडे, दीठउ शंभुविहार ओ गिरिवर विस्तर घणउ ओ महालंतडे, हउ किम पामउ पार ॥२२॥ तिहां हूतउ पाछउ वलिउ ओ महालंतडे, भवण मझारि पहूत ओलि मोलि जिनवर तणां महालंतडे, वंदीअ बिंब बहूत ॥२३॥ संभलि शंभव सामीआ ओ निरेसूआ, राव करुं जिम बाल तुंह जि इणि जगि जागतु ओ निसूआ, दीसइ देव दयाल ॥२४|| मूरति मूं अति रति करइ ओ, सोम कला किरि सार . . नयनि अमीरस वरसली अ निरेसूआ, सेवई सविचार ॥२५॥ हुं भागउ भवफेरडी ओ निरसूआ, तुं शरणागत धीर सार करउ हिव माहरीओ निरेसूआ, आपिन भवतणउं तीर ॥२६॥ भगति भणी मई संथविउ अ निरेसूआ, पाय तुझ--- नितु नमइं लक्ष्मीसागरसूरि भगति भणी मइ संथविउ ओ निरसूआ, मनह मनोरथ पूरि ॥२७॥ इअ नमिअ नरेसर भुवणदिणेसर, तविअ भविअ सिवसुखकर पावागिरिमंडण दुरिअविहंडण, जिनमाणिक्क मुणिंदवर ॥२८॥ ॥ इतिश्री पावागिरि चेत्रप्रवाडिः समाप्ता ॥ ॥ महोपाध्याय श्रीश्रीश्रीजिनमाणिक्यगणि-शिष्य अनंतहंसगणिकृता ।। ॥ अनंतकीर्तिगणिना लिखिता श्रेगोरा पठनार्थं ॥श्री।। श्रीस्तंभतीर्थनगरे ॥छ। ॥श्री।। ॥छ। (महावीर जैन विद्यालय द्वारा सोनगढमां योजित २३मा जैन साहित्य समारोहमा प्रस्तुत करेल शोधपत्र) C/o. A-2, वात्सल्य फ्लेट, ६३, वसंतकुंज, पालडी, अमदावाद-७
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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