________________
१५२
अनुसन्धान-६९
खरूं? अने परप्रकाशवादीओना मते ज्यारे ज्ञान अन्य ज्ञान द्वारा गृहीत थाय, त्यारे तेनी साथे ज, ते ज्ञानमा रहेलुं प्रामाण्य-अप्रामाण्य पण, ते अन्य ज्ञान द्वारा, जणाई ज जाय ? के पछी ते जाणवा माटे कोई अलग प्रक्रिया करवी पडे ? ढूंकमां, ज्ञान- ज्ञान थाय त्यारे स्वाभाविकपणे अना प्रामाण्य-अप्रामाण्यनुं पण ग्रहण थई ज जाय के ओ ग्रहण पछीथीं कोईक क्रियांनी सापेक्षपणे थाय? आ विचारणीय प्रश्न छे. अत्रे दार्शनिक परिभाषामां स्वाभाविक सहभावी ग्रहण 'स्वत:' अने सापेक्ष ग्रहण 'परतः' कहेवाय छे, तथा आ प्रामाण्य-अप्रामाण्यनुं ग्रहण 'स्वतः' के 'परतः' थाय चर्चा 'ज्ञप्तौ (ग्रहणमा) प्रामाण्यवाद' तरीके ओळखाय छे.
उपर आपणे प्रामाण्यवाद अंगे जे वात करी ते प्रमा(-यथार्थज्ञान)गत प्रामाण्य अने अप्रमा(-अयथार्थ ज्ञान)गत अप्रामाण्य केवी रीते जणाय ते सन्दर्भे करी. पण ओ सिवाय ज्ञानमां प्रामाण्य-अप्रामाण्य क्यांथी जन्मे छे ओ मुद्दे पण दार्शनिक आचार्योनां विभिन्न मन्तव्यो छे. केटलाकना मते ज्ञानसामान्य(-तमाम ज्ञानो)नी जनक जे कारणसामग्री छे, ते ज ते ते ज्ञानमां प्रामाण्य के अप्रामाण्यनी पण जनक छे. प्रामाण्य के अप्रामाण्य ओ रीते स्वाभाविक उत्पत्ति धरावे छे, आपेक्षिक नहीं; केम के अमने ज्ञानजनक सामग्री सिवाय अन्य कशायनी पोतानी उत्पत्तिमां गरज नथी. आ पक्ष 'स्वतः' गणाय छे. आनाथी सामा छेडे परतः प्रामाण्य के अप्रामाण्यनी उत्पत्ति स्वीकारनारा आचार्यो ज्ञानजनक सामग्रीने अविशिष्ट ज्ञाननी जनक गणे छे. अमना मते ते सामान्य ज्ञानमां प्रामाण्य के अप्रामाण्य स्वरूप विशिष्टता तो गुण के दोषथी सापेक्षपणे जन्मे छे, स्वाभाविक रीते नहीं. प्रामाण्य-अप्रामाण्यनी उत्पत्ति विशेनी आ चर्चा 'उत्पत्तौ प्रामाण्यवाद' तरीके ओळखाय छे.
सामान्यतः प्रामाण्यवादने सम्बन्धित आ बन्ने चर्चाओ अकबीजा पर अवलम्बित होवाने कारणे, उत्पत्तिमां 'स्वतः' पक्षना समर्थको ज्ञप्तिमां पण 'स्वतः' पक्ष ज स्वीकारे छे, अने परतः पक्षना समर्थको बन्नेमां 'परतः' ज
१. ज्ञान पोताना विषयने ज जाणी शके छे, पोताने नहि. तेने जाणवा माटे तो अन्य ज्ञान
जोइ अम माननारा नैयायिक, मुरारि मिश्र (मीमांसक), कुमारिल भट्ट (मीमांसक) व. परप्रकाशवादी गणाय छे.