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________________ मार्च - २०१६ १४७ दर्शावी छे ते अजायबी पमाडे ओवी छे. आबुना पहाड पर आवेलां देलवाडानां जैन मन्दिरोमां जे प्रकारनी अष्टपांदडी वाळा कमळनी रचना कोतरवामां आवी छे, तेवा ज प्रकारनी आकृतिओ अहीं पण जोवामां आवे छे." संभवतः 'सर्वतोभद्र' नामनुं जैन मन्दिर आ होय अम जणाय छे. उपसंहार : हज्जारो वर्ष पहेलां आ स्थळे महाधरतीकंप आवेलो, अमांथी फाटेला ज्वाळामुखीमाथी आ पावागढना काळा पथ्थरोवाळो डुंगर अस्तित्वमां आव्यो. ओक लोकवायका अवी पण छे के आ पर्वत जेटलो बहार देखाय छे तेनां करतां धरतीनी अंदर तरफ वधारे छे. अटले के तेना पा जेटलो भाग दृष्टिगोचर थाय छे. तेथी ज ते पावागढ तरीके ओळखायो. आ डुंगर पुरातन काळथी खूब ज पैतिहासिक अने धार्मिक महत्त्व धरावे छे. . पावागढनी आ जैतिहासिक माहिती परथी लागे छे के शत्रुजय, सम्मेतशिखर अने गिरनारनी जेम ज आ तीर्थ पण अत्यंत पूजनीय हतुं. पावागिरिना टोच सुधी निर्माण पामेला जिनचैत्यो आजे नामशेष छे. इतिहासने वागोळतां अम लागे छे के जैन संस्कृति, जैन धर्म अने जैन मन्दिरोनो जोटो जगमां जडे तेम नथी. आजनो युग जेम वैज्ञानिक छे तेम तिहासिक युग पण छे. आजे . जेम दरेक वस्तु, परीक्षण वैज्ञानिक दृष्टिले करवामां आवे छे तेज रीते आजनो युग तिहासिक दृष्टिप्रधान होई प्राचीन धर्मो, संस्कृति, संस्कृतिनां विविध साधनो जेवां के - आचार, विचार, व्यवहार, तत्त्वज्ञान, साहित्य, शिल्प, कळा आदिनुं पण मैतिहासिक दृष्टिले अन्वेषण मांगे छे. अने अनां कारणोने पण जाणवा इच्छे छे. आथी आजनो बुद्धिमान वर्ग पण प्रजानी जिज्ञासाने तृप्त करवा माटे ते दिशामा प्रयत्न करी रह्यो छे. आ ज दृष्टिने लक्षमा राखीने मारा द्वारा लिप्यन्तर थयेल आ प्रत मारफते जे पावागढनी औतिहासिक माहिती प्राप्त थई छे ते उपयोगी नीवडे ते आशा. वस्तुतः तीर्थोना जीर्णोद्धार जेटलुं ज तीर्थोनो इतिहास प्रगट करवानुं कार्य महत्त्व- छे. अन्ते, जे तीर्थोओ लोकजीवनना संस्कारने सुवासित करवामां
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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