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________________ १४६ अनुसन्धान-६९ श्रीविजयसेनसूरि सं. १६३२मां अहीं आव्या त्यारे जशवंत शेठे मोटो प्रतिष्ठा महोत्सव कर्यो हतो. सं. १७६४मां पं. श्रीशीलविजयजीओ अंहींना नेमिजिणंदनो उल्लेख कर्यो छे. १९मी सदीना श्रीदीपविजयजीओ रचेला 'जीरावली पार्श्वनाथ स्तवन' मां अक मन्दिरनुं वर्णन आ प्रकारे करेलुं छे " पावा उपर संघे कीधो, — देवल जग मनोहारी रे, बावन जिनालय फरती देहरी, जगजनने हितकारी रे, ज्ञानरसीला रे अभिनंदन देव दयाल गान, प्रभु जीरावली जगनाथ यान, संवत इग्यारसेंहे बारा वरसे, देव प्रतिष्ठा थावे रे, अभिनंदन जीरावलि पारस, अंजनशलाक सोहावे रे. " [१२मी सदीमां अभिनंदन स्वामी अने जीरावला पार्श्वनाथनी मुख्य प्रतिमाओ हती. जेनी प्रतिष्ठा आचार्य गुणसागरसूरिओ करावी हती. (पावागढथी वडोदरामां प्रकट थयेला जीरावला पार्श्वनाथ पुस्तकने आधारे) आ उल्लेख उपरथी अहीं श्वेतांबरीय मन्दिरो ओगणीसमा सैका सुधी हयात हता. ] सने १८९५मां अहीं आवेला विदेशी विद्वान डॉ. जे. बेर्जेसे नोंध करी छे के - "पावागढना शिखर पर रहेला कालिका माताना मन्दिर नीचेना भागमां अति प्राचीन जैन मन्दिरोनो जथ्यो छे के जेनो पुनरुद्धार, थोडा सुधारा - वधारा साथे हालमां ते मन्दिरोनो कब्जो जे जैनो करी रह्या छे, तेमना तरफथी थोडा वखत पहेलां ज कराववामां आवेल छे." 'At the top the shrine of Kalika Mata'. अहींनी अक जुम्मा मस्जिदनो परिचय करावता ओक विद्वान कहे छे " आ मस्जिदनी बारीओ अने घूम्मटोमां जे कोतरकाम अने शिल्पकळा
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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