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अनुसन्धान-६९
महत्त्वनो भाग भजव्यो छे ओवी जैन संस्कृतिना अंगभूत आ तीर्थ संस्थानुं औतिहासिक हार्द रजू करवामां मारो आ अल्प प्रयत्न कंई पण फाळो नोंधावी शकशे तो मारो श्रम सफळ थयो मानीश.
___पावागिरि चैत्यप्रवाडि . . सिरि सरसति सामिणि माय पाय, पणमेवीअ सेवीअ सुगुरु राय पावागिरि चेत्रप्रवाडि हेव, संखेवि करी अणुसरिसु देव ॥१॥ पहिलउं धुरि चंपकनेर नामि, वर नयरि नमीजई नेमि सामि अनइ सामीअ संति जिणिद पाय, पणमेवि करेवी सफल काय ॥२॥ ओ दीसइ गिरूउ गिरिह राय, जिहां राज करइ अरिसिंघ राय पेखी तसु परबत पवर पाज, हवई चडीइं रमलि करंत आज ॥३॥ ईणि गिरि विण माहव मास काल, सवि तरुअर गरुअ रहइं रसाल हवई आगलि आवी प्रथम पोलि, जिहां रायभवणनी अछई ओलि ||४|| मणहर मढ मन्दिर माली गिरिसुंदर, वंदर(?) वालि निहालीईओ दीसंति सुरंगी नयणि कुरंगी, रंगि रमंती मालीइ ॥५॥ . आगलि वलीअ विसमविसबल्ली, तिहां दीसई नानाविह वल्ली फुल्लीअ फल्लीअ अपार तु जय जय, सुघृत सुभृत प्रापीअ वापीवर सोहइं सरस सरोवर पीवर, पीवर भरिअ भंडार तु जय जय ॥६॥ धण कण कंचण रयण तमोहर, सोहई बहु कोठार मनोहर मोह रचइं जन चींति तु जय जय, अनुक्रमि आवी बीजी पोलि बिहु पासे ऊंडी अति झोलि, ओलिई देउल दीसंति तु जय जय ||७|| जाणे किरि कलियुग ऊवेखी, रही विहार शिखर सुविशेषी पेखीजइ धजधार तु जय जय, गयणंगण संगत अति निरमल दंड कलश झलहलइ झलामल, आमलसारउ सार तु जय जय ॥८॥ जव जिणभवण दुवारि पहूतउ, धरम मनोरथि रथि संजूतु हुंतु हरिख अपार तु जय जय, त्रिभुवनपति जिन मूरति सारी पेखीअ पूज करिसु अनिवारी, वारीअ वार विकार तु जय जय ॥९॥