SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४४ अनुसन्धान-६९ विक्रमनी १६मी सदी : तपागच्छना सुमतिसुन्दर आचार्यनी मधुर वाणी सांभळीने मांडवगढनो विशिष्ट संघपति वेल्लाक, सुलताननुं फरमान मेळवी संघ लई यात्राले चाल्यो हतो. ईडरगढ, जीरावला, आबू, राणकपुर वगेरेमा यात्रा करी पावकशैल (पावागढ) पर रहेला सम्भवनाथने प्रणाम कर्या पछी हृदयमा शान्ति पामता ते संघवीओ माळवा देशमां पोताने स्थाने पहोंच्या हता. (आ उल्लेख वि.सं. १५४१मां पं. सोमचारित्रगणिले रचेला गुरुगुणरत्नाकर काव्यमां मळे छे.) विक्रमनी १८मी सदी : वि.सं. १७६४मां जैन मुनि शीलविजयजीओ तीर्थमालामां 'चंपानिरे नेमिजिणंद महाकाली देवी सुखकंद' कथन द्वारा सूचित कर्यु छे के - चांपानेरमां नेमिनाथ (मूळनायकवाळु) जिनमन्दिर हतुं अने महाकाली देवीनुं स्थानक हतुं. विधिपक्ष (अचलगच्छ)ना आचार्य विद्यासागरसूरिना पट्टधर उदयसागर सूरिओ पावागढनी महाकालिनी तथा साचा देवनी यात्रा वि.सं. १७९७मां करी हती - ओम नित्यलाभ कविओ वि.सं. १७९८मां रचेल विद्यासागरसूरिरास (औ. राससंग्रह भाग-३, य.वि.ग्र.) परथी जणाय छे. विक्रमनी २०मी सदी : वि.सं. १९४४मां महा सुद ८ चांपानेर गाममां जैनमन्दिर (दि.)नी स्थापना थई. पावागढ चढता ६ठ्ठा दरवाजानी बहार भीतमां दि. जैन प्रतिमा पद्मासन (१.५') दोढफूट ऊंची सूचवी तेना परनो लेख ११३४ जणाव्यो छे. छाशिया तळाव पासेना ३ मन्दिरो विना प्रतिबिंबनां जीर्ण पड्यां जणाय छे. ___ दूधिया तळाव उपर बे प्राचीन जीर्ण मन्दिर जणावी तेमांना अकनो उद्धार सं. १९३७मां थयो जणावे छे. आगळ सीडियोनी बने तरफ ८ (दि.-?) जैन प्रतिमा जणावी पछी उपर कालिका देवीनू मन्दिर जणाव्युं छे.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy