________________
१४२
अनुसन्धान-६९
वि.सं. १५२५मां लक्ष्मीसागरसूरि जे तपागच्छना आचार्य छे तेमनो उल्लेख __ 'पावागढथी वडोदरामां प्रकट थयेला जीरावला पार्श्वनाथ' पुस्तकना पृष्ठ
६३मां जोवा मळे छे. • लक्ष्मीसागरसूरिनो परिचय "जैन परम्परानो इतिहास" भाग-३, वि.सं.
२०२०, त्रिपुटी महाराजना पुस्तकमां जोवा मळे छे. पृष्ठ ५४०-५४१.
___ मनुष्यना राजा अने भुवनमां सूर्य समान, भव्य जीवो वडे स्तवायेला, शिवसुखने आपनारा अवा पावागिरि मंडण नेमिनाथ नरेश्वरनी आ स्तुति जिनमाणिक्य मुनिना शिष्य द्वारा रचायेल छे.
आ रीते, पावागिरि मन्दिरोनी यात्रा समाप्त थाय छे. महोपाध्याय श्रीजिनमाणिक्यगणिना शिष्य अनंतहंस गणि अना कर्ता छे. अनंतकीर्ति गणि प्रतना लेखक छे. स्तंभतीर्थ (खम्भात) नगरमां तेओश्रीओ आनुं लेखन कर्यु
• भ. लक्ष्मीसागसूरि अने आ. सोमजयसूरिना उपदेशथी अमदावादमां नवा
ग्रन्थभण्डारो स्थपाया हता. ते भण्डारो उपा. जिनमन्दिर गणिनी देखरेख नीचे तैयार थया, अने महो. जिनमाणिक्य गणिवरे ते बधान संशोधन कर्यु. महो. अनंतहंस गणि ते ५५ मा भ. आ. हेमविमलसूरिनी आज्ञामां हता, आथी ते पोताने तेमना पण शिष्य बतावे छे. पं. अनंतकीर्ति गणिो सं. १५२९मां मंत्री गदराज श्रीमालीनी पत्नी सं. सासूने भणवा माटे "शीलोपदेशमाळा" लखी. (प्रक. ४४, पृ. २११) (श्री प्रशस्ति संग्रह भाग-२, पृ. १४०) महो. अनंतहंस गणिजे "आनंद आदि श्रावक चरित्र" रच्यु. सम्भव छे के तेनुं बीजुं नाम “दशदृष्टान्तचरित्र" पण होय (प्र. ५, पृ. ४५६), पट्टावलि समुच्य भाग-२, पुरवणी पृ. २५२, २५३) (जैन परम्परानो इतिहास, त्रिपुटी महाराज पुस्तकने आधारे पृष्ठ - ४६२)
कृतिना आधारे आ प्रमाणे पावागढनो इतिहास मळे छे. आ उपरांत पावागढनो औतिहासिक उल्लेख अलग-अलग पुस्तकोने आधारे नीचे प्रमाणे छे.