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________________ मार्च - २०१६ १४१ • 'पावागढथी वडोदरामां प्रकट थयेला जीरावला पार्श्वनाथ (पृष्ठ १९-२०) ओ बन्ने सदगृहस्थोओ तपागच्छना लक्ष्मीसागरसूरि, सोमजयसूरि वगेरे आचार्योना सदुपदेशथी वि.सं. १५३८मां चित्कोश (ज्ञानभण्डार)मां पोताना द्रव्य वडे समग्र जिनसिद्धान्त लखाव्यो हतो. ('तेजपालनो विजय' १६मी सदी पृष्ठ २०) • 'जैन परम्परानो इतिहास' - ३, पृष्ठ-५४२ आम, स्तुति, स्तवन करीने श्रावक पोताना दुःखरूपी वन अने पापने पखाळी नाखे छे. तेमनुं अति चंचळ मन पावागिरि पर आपोआप धन्यता अनुभवे छे. हवे तेओ अंचलवसही तरफ जाय छे. ____पर्वत पंथ पर पहोंचीने अंचल वसही भणी जई त्यां वीर जिनेश्वरने नमस्कार करीने बांधेला कर्म छोडीओ ओवो भाव व्यक्त करे छे. आगळ पनक वसही छे. ज्यां मोटो प्रमाणमां भगवानना समूहमां दर्शन करे छे. त्यां तलावडी छे तेनो स्पर्श करतां ठंडु-ठंडु पाणी मळे छे. ज्यारे गिरिना शिखर पर आवे छे, त्यां शंभुविहार देखाय छे. गिरि विस्तारथी अत्यंत गाढ छे. तेनो पार केवी रीते पमाय ? त्यां पाछळ क्यांकथी भवनमां अंदर जाय छे, ज्यां जिनेश्वरनी घणी प्रतिमाओ पंक्तिमा हती जेना वन्दन करे छे. पार न पमाय ओवा संसारसमुद्रना पारने पामेला, देवोना समूहथी वंदायेला, कल्याणरुप वेलडीना विशाळ मूळ समान सर्व जिनेश्वरो सारी वस्तुओमां अक सारभूत ओवा मोक्षने आपो ओवी प्रार्थना तेओ सौ करे छे. आ स्थळे बाळक जेम अवाज करे अने जगतमां जाणे जागता देव होय अवो देवलोक आ संभवनाथ स्वामी देवनो देखाय छे. मूर्ति तेमने अति आनंद आपे ओवी आलादक छे. सौम्य कळाथी शोभता जोई नयनमां अमीरसने वरसावता सारा विचारपूर्वक भगवाननी पूजा करे छे. 'भवना फेरा दूर करनार,तुं शरणे आवेलानो रक्षण करनार छे, मारी पण तुं सार कर. तारी पासे हं अनंत भवना तीरनो पार पामु छु।' ओवी उत्कट लागणी तेमनामां जागृत थाय छे. . भक्तिथी युक्त स्तुति करी प्रभुने नमस्कार करे छे. लक्ष्मीसागरसूरि भक्ति करी मनना मनोरथ पूरे छे.
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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