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________________ १४० अनुसन्धान-६९ पाप छे ते दूर थाय छे. बोरसली, मोगरो जेवा रसपूर्ण परागवाळा पुष्पमधु तेमज करेण, पारधि (अक फूलनुं नाम) जेवां सुन्दर फूल विशाळ मात्रामां त्यां जोवा मळे छे. चंपो, जासूद, सुगंधी वाळो, जूइ जेवी वनस्पतिनी पूरेपूरी सुगंध ते नगरनी दशे दिशाओमां व्यापे छे. मननी आंशाने पूरी करीने जमणा हाथ नजीक पार्श्वनाथ जिनेश्वरनी विविध कुसुम वडे पूजा करे छे. सुन्दर, रसीलो, अलबेलो, इन्द्र महाराजा जेने नमेला छे, केसर, कपूर, कुसुमथी सुसज्ज अवा मुक्ति अपावनार स्वामीने तेओ मस्तक नमावीने वन्दन करे छे अने परम आनन्दने पामे छे. बे हाथ जोडी प्रणाम करी जगतना नाथ जिनेश्वरनी प्रदक्षिणा करे छे. परमेश्वरनी पूजा करतां क्रोड कर्मो नाश पामे छे. आवा आन्तरिक हर्षोल्लाससाथे तेओ प्रभुना रंगे रंगाय छे. सहसाओ करावेल दक्षिणमां आदीश्वरनुं देवमंन्दिर छे, त्यां वन्दन करतां ते रत्नमूर्तिनो प्रभाव अद्भुत जणाय छे. कल्याणना मूळ, जगमां प्रकाश करनारा, सारा गुणोना ओक स्थानरूप अने मुनिओना इन्द्र श्री महावीर जिनेश्वरनी रत्नमय मूर्ति उत्तर दिशामां आवेला मन्दिरमां छे. ते प्रभुना अंगे भक्तिपूर्वक तेओ वंदन अने पूजा करे छे. खीमसिंहे जे भवन कराव्युं छे त्यां नेमिनाथ स्वामीने नमन करे छे. आगळ जतां अम्बिकादेवीनी देरी आवे छे, ज्यां दर्शननो लाभ लई प्रणाम करी तेओ आगळ वधे छे. [अणहिल्लवाड पाटण (गुजरात)मां प्राग्वाट बृहच्छाखा (वीसा पोरवाड)मां मुकुट जेवा छाडा शेठना वंशमां खीमसिंह अने सहसा नामना बे उदारचरित संघवी, विक्रमनी १६मी सदीना प्रारम्भमां थई गया. जेमणे चंपकनेर समीपना अत्युच्च शिखरवाळा पावकगिरि पर अर्हतनुं चैत्य अने त्यां आर्हत (जिनमुं) अतिप्रौढ बिम्ब कराव्युं हतुं. जेनी उच्च प्रकारनी प्रतिष्ठा पण ते बन्ने हर्षोत्सवपूर्वक वि.सं. १५२७मा पोष वद ७ना सुदिने करावी हती.] • 'जैन सत्यप्रकाश' वर्ष-११, अंक- १०-११, पृष्ठ-२७४, श्लोक-१४ • 'तेजपालनो विजय' वि.सं. १९९१ (श्रीजैनधर्माभ्युदय ग्रन्थमाला - ३, पृष्ठ-१९)
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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