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अनुसन्धान- ६९
नाम आ स्तवनमांथी आपणने मळे छे. हाल भरुचमां जे पेढी चाले छे ते पण धर्मचन्दजी पछी लगभग २५ वर्षे थयेला शेठ श्री अनुपचन्द मुलकचन्दजीना नामे छे. पण धर्मचन्दजीनो कोई उल्लेख मळतो नथी. * सङ्घमां साधु-साध्वी २५ हतां तेवो उल्लेख मळे छे पण श्रावक-श्राविकानी संख्यानो कोई उल्लेख मळतो नथी.
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सङ्घयात्रानो जे विहारपथ दर्शावेल छे. ते प्रमाणे जोइओ तो ओक दिवसमां कर्माथी गंधार ४२ कि.मी., गंधारथी कावी ६८ कि.मी., कावी थी आमोद - ५७ कि.मी. अने जंबुसरथी कर्माड - ४३ कि.मी. नो विहार पगपाळा करवो शक्य नथी ओटले प्रश्न थाय के सङ्घमां वाहनोनो उपयोग थयो हशे ? परंतु सङ्घस्तवनमां स्पष्ट उल्लेख छे के सङ्घमां साध्वी पण जोडाया छे तेथी सङ्घ छरी पालित होवो जोईओ पण १-१ दिवसमां आटलुं अन्तर ओछां कापवुं से ओक विचारणीय वात छे. अ समयना रस्ता अलग हता, जेथी अंतर होय. छतां आजनी तुलनामां तो लांबा विहारो ज होय.
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* स्तवनमां 'अकलेसर गाम सुभावे रे झवेर देवचंद सतआवे रे' से कडी द्वारा अनुमान करी शकाय के २०० वर्ष पहेलां हालनुं अंकलेश्वर अकलेसर हशे अने त्यारबाद हाल अंकलेश्वरना नामे ओळखाय छे.
* सङ्घनुं रोकाण पण ओक मुकामे १ -१ दिवसनुं न थतां गंधार मुकामे ३ दिवस अने कावी मुकामे ७-७ दिवस अने स्वामीवात्सल्य - पहेरामणी आदि पण अलग-अलग श्रेष्ठीओ द्वारा थई.
* सङ्घ स्तवनमां दर्शाव्युं छे के कावी तीर्थमां प्रभुनी पूजा माटे सात-सात बोली बोलावाई हती. हाल समयमां पण शंखेश्वर तीर्थमां प्रभु पूजा माटे पांच बोली बोलवामां आवे छे. जेम अत्यारे आपणे 'रूपिया' के 'मण'मां बोली बोलीओ छीओ, तेम अ समये 'भाग' मां बोली बोलाती हशे केमके स्तवनमां लख्युं छे के....
"पूजा छठी भगवाननी रे लाल, सात भाग अर्ध लीध पाना नाना पुजा सातमी रे लाल, ऋणभाग सहु सङ्घ दीध. "