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________________ ११२ अनुसन्धान-६९ (हे परम दयाळु ! मारा पर दया महेर राखजो, हुं तो कूड कपटथी भरेलो कृतघ्नी छु, अने आप कृपाळु छो.) गुरु महैमा गुरुरांमकी, कही कूण मैं जाई, । हाथ जोड बिनती करुं, दाम रहै सरणाई... ९/१२९ (गुरु रामनो महिमा केम कही के वर्णवी शकाय? हुं तो मात्र शरणे आवीने हाथ जोडीने करबद्ध प्रार्थना ज करुं छु.) जेती जगमैं ओपमां, बरण गमे सब संत, तेती तुमंही जोगि हो, हम कर जोड कहत... १०/१३० (आ जगतमां जेटली उपमाओ छे ते सर्वे आगळना संतो वर्णवी गया. छे. ओ तमाम उपमाओने लायक आप योगीराज छो अम हुं हाथ जोडीने कहुं छु.) सतगुरु सिरजणहारकी, महमा कही न जात, बुधि माफिक वरणी कछू, मणमैं कण दरसात... ११/१३१ (सर्जनहारा सतगुरुनो महिमा कही शकाय तेम नथी, मारी अल्प बुद्धि मुजब थोडंक वर्णन करी शक्यो छु ते तो ओक मणमा मात्र अकाद कणं जेटलुं ज छे.) अरज लिखणकी बापजी, मों मैं कहा सहूर, दया देख इंद्रप्रस्थकी, पावन करो जरूर... १२/१३२ (आपने अरज करवानी ताकात मारामां क्यां छे ? पण इन्द्रप्रस्थ उपर दयानी नजरे जोईने पावन करशो.) अरजी मालम होवसी, श्री महाराज हजूर, हम तुछ-बुधी जीव है, कीज्यो अरज मंजूर... १३/१३३ (आ अरजीथी आपने मालुम पडी ज जशे के अमे तो तुच्छबुद्धि जीव छीओ, छतां श्री हजुर महाराज अमारी अरज मंजूर करशो मेवी विनंती छे.) बाल बुधी अह........................... (अहींथी अधूरुं छे.) ___ * * * Clo. आनन्द आश्रम घोघावदर (गोंडल), जि. राजकोट - ३६०३११
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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