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________________ मार्च - २०१६ १०७ अने तमाम संतोनी अरज ओक ज छे के समग्र सृष्टिना दरेक जनो उपर कृपा दाखवशो.) (आपनी निश्रामा रहेनारा सो संतोने मारा वंदन - जेमां :) प्रथम मुनिवर धरम मूरति नाम खिम्यांरांम है, संतोषदासजी पंच कहीओ मुखिन मांही नाम है, निरसै सैरामजी साध पूरेस सैस सबकी हरंत जू, कबिन मांही बगसीरांमजुं जान बसतर रहित जू... १०१ बैरागबांन है मगनीरांमजु राम राम जु रहत है, पुनि वैद्य रामविलासजी सब रोगकू वै हरत है, स्याहा बसन सदाराम है लेखक लज्यारांम जू, दिढि चिति कहैं धर्मदासजु पंडितोमें नाम जू... १०२ हेतमदासजु हेत करके देत है सबकू असंन, चरचा प्रवीन रामकुस्यालसु करत है सबकू प्रसन, भगतरांम सुसील साधू रामनिवासजु गान कर, कारजरांम प्रवीण कहीओ करत अदभुत बात वर... १०३ गोविंदरामजु तीन है पुनि ओक तिनमे अधिक है, सहंसक्रत* प्राकृत को जिनकै हिरदै बिबेक है, उगतरांमजु दोई है पुनि खेमदास सु रंग करै, मेवारांम भजनीक है, अरु रामलाल मन हरै... १०४ सिवरांमदास बहु चतुर है पुनि पाठ बांणीको करै, हेमदासजु श्रम करकै पडत केडबा करै, भलारांम बिदेही जैसें फोज मैं अगवांन जू, बसन जिननें त्यागी ओ बहै' सांवतरांम सुजांन जू... १०५ दूतीओ गोबिंदरांम हैं सो बात अछी करत हैं, अब जान रामप्रसादजी वें न्याइ मुखसूं कहत हैं, *संस्कृत •बडे
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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