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अनुसन्धान-६९
दोहा -
महाराज क्रपालजी, सतगुर धरम जिहांज,
श्री अकसो आठ पुन, श्री दिलसुधरांम माहाराज... ९६ । सोरठा -
उपमां अनंत अपार, श्री ओक सत आठ. पुन, .
सेस न पावै पार, महैंमां सतगुर महंतकी... ९७ (धर्मना जहाज अवा सतगुरु कृपाळु श्री १०८ श्रीदिलसुद्धराम महाराजने अनंत अपार उपमाओथी संबोधीओ तो पण जेनो शेषनाग पण पार पामी शक्या नथी अवो सतगुरु महंतनो महिमा छे.)
वचनका - सो महाराज सेस जीभी दोई हजार रसनां मैं गावहै तो भी पार न पावहै, सो गरीबनवाजजी हम सारखे जीवोकी काहा तागत अरु काहा पूती है, सौ महैमा गावै ओर गरीबनवाजजी आप सबके पूज्य हो अरु ब्रह्मा विष्णु अरु शिव केवल गुरानैं पूजनेके वास्तै अवतार धार है.. ९८
(शेषनागने बे जीभ छे ते हजार हजार जीभोथी गुरुमहिमा- गान करवा चाहे तो पण पार पामी शके नहीं, तो हे गरीबनिवाज गुरुजी, अमारा सरखा पामर जीव पासे ओवी पहोंच के ताकात क्यां छे ? के आपनो महिमा समजावी शके ? आप तो तमामने माटे पूजनीय छो, अने ब्रह्मा, विष्णु के शिवजीओ मात्र गुरुपूजन माटे ज अवतार धारण करेलो.) दोहा -
अब हजूर मैं साध है, तिनसूं बिनती होई,
क्रिपा हम पर राखज्यो, मति छिट काज्यो मोई... ९९
(तो हवे आपनी हजुरमा हुं साधु छु जेनी विनंति सांभळी कृपा करशो, मने तरछोडशो नहीं.)
सब संतनसूं अरज अह, सब जन क्रिपा कीन,
हम सब है सरणि, तुम सबमै परवीण... १०० (आप दरेक बाबतमा प्रवीण छो, अमे आपने शरणे आव्यां छीओ,