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________________ मार्च - २०१६ दरेक मस्तकमां लाख लाख मोढां होय अने दरेक मोढामां लाख लाख जीभ होय तो पण गुरुमहिमानुं गान करवा पूरता नथी. ) गुणां रहित अलपत सदा, जनक विदेही जांण, अर्कै मुखमै कहा कहूं, बेद करत बाखान... ९२ (सदैव निर्गुण, वर्णवी शकाय नहीं ओवा जनक विदेही सम महापुरुष जेना वेदो पण वखाण कर्या करे छे अने मारा ओक मुखथी केम वर्णवी शकुं ? ) बेद साध सुमरति कहै, गुर गतको नही भेव, म्हैमां किस बधि कीजीओ, नमो नमो गुरदेव... ९३ १०५ ( चार वेद, स्मृतिग्रंथो अने साधुजनो कहे छे के गुरुमतिनो भेद वर्णवी शकाय नहीं, तो आपनो महिमा हुं केवी रीते गाउं ? हुं तो मात्र नमन करूं छं.) - ध्यान अमूरति को करण, सब जीवन हितकार, भगति काज भव उपरै, आई लीयो अवतार... ९४ ( अमूर्तनुं ध्यान धरवा, भक्तिनो फेलावो करवा तथा तमाम जीवोना हित माटे आपे अवतार लीधो छे.) छंद मनहर सकल गुण निधांन अति बुद्धिमांन स्वांमी पतित आप धरम के मंडाण हो, जनमके सुधारण क्रिपा सिंधू क्रपानिधांन गरीबनवाज अधरम के खंडण हो, अदभूत सूरति ताकी महैमां कही न जात सरब गुन खांन दीनबंधू ही कहाओ हो, माहाराजाधिराज· श्री ओक सत आठ पुन अनेक असंख श्री कही नही जाई हो... ९५ - (आप सकळ गुणोना भंडार, अति बुद्धिशाळी, पतितोना स्वामी, धर्मनुं मंडाण करनारा, जनम सुधारक कृपासिंधु, कृपानिधान, गरीबनिवाज, अधर्मनो नाश करनारा, जेमनी सूरता स्थिर छे ओवा सर्वे गुणोनी खाण समा महाराजाधिराज श्री १०८ जेनी पाछळ अनेक - असंख्य श्री लागी शके ओवा समर्थ छो.)
SR No.520570
Book TitleAnusandhan 2016 05 SrNo 69
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2016
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size12 MB
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