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अनुसन्धान-६९
(आप परम धीरजने धरनारा, जेनी मति गंभीर छे, इंद्रियो दमन करनारा परम ज्ञानी, अगम्य ध्यानी, परम भक्तजन, दासभावे रहेनारा, जेमणे कामनाओ तजीने रामनु नित्य भजन कर्यु छे, लोभ-लालच, क्षोभनो त्याग कर्यो छे, तमाम प्रकारनी आशा त्यागीने नित्य प्रकाशमान बुनेला, निर्विकारी, सार ग्रहण करनारा, नित्य अखंड धर्मनुं मंडाण करनारा छो.). . दोहा -
धरम मंड महाराज हो, पा धरि उपरि आप.
कलि विषि ईरि निवारण, सरण हरण त्रये ताप... ८७
(आ धरती उपर कळियुगना तमाम झेरना निवारण तथा शरणे आवेलानां त्रिविध तापोना हरण माटे ज आप धर्ममंडन माटे अवतर्या छो.)
परम उजागर परम गत, सत चित आनंद आप, .
करणांसिंध कपाल हो, हरण जीव जगताप... ८८
(जीवमात्रना तापो-कलेषोनु हरण करवा सच्चिदानंद परम उजागर परम गतिने मेळवनारा कृपाळु करुणासिंधु समा आप आव्या छो.) .
भगति उजागर ग्यांन, चिदानंद चिरंजीव,
पावन-पतति दयालजी, अधम उधारण सीव... ८९ ।
(आप पतितपावन, दयाळु, अधम जीवोनो उद्धार करनारा कल्याणकारी, चिदानंद, चिरंजीव, भक्ति प्रकटावनारा ज्ञानस्वरूप छो.)
गुर महैमां ब्रह्मा करै, सिव नारद अवतार,
तिन हू पार न पाईयो, तो दूजो किसो विचार... ९०
(ब्रह्मा, शिव, नारद अने तमाम अवतारो गुरुमहिमा- गान करता रह्या छे छतां पार पाम्या नथी तो बीजी वात तो हुं कई रीते करी शकुं ?)
लख धड लख लख सीस होई, सीस सीस मुख लख, मुख मुख रसनां लख होई, तोहु गुर महैमां काहा अख... ९१ (अक लाख शरीरनां धड होय, दरेक धडने लाख मस्तक होय,
8 पा- पग, धरि-धरती