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अनुसन्धान-६९
कुंडल्या - .
साहिपुरो सुंदर माहा, जाहां साहि जीवकी होय, राव रंक दुजि सुद्र जो, सरणे आवे कोई, सरणे आवै कोई सबद, गुरुको उरि थारै, नौका नाव चढाई सिध, भव पार उतारै, . उभै लोक आनंद लीयां, धूपद प्रापति सोई,
साहि पुरो सुंदर माहा, जाहां साहि जीवकी होय... ४६
(महा सुन्दर रळियामणी धरती ज्यां साक्षी पूरे छे, ज्यांना तमाम जीवो पण साक्षी पूरे छे के राय, रंक, द्विज, शुद्र कोईपण शरणे आवनारनो शब्द गुरुजी पोताना हैयामां धारण करे छे अने सिद्ध नौकामां चडावी भवसागर पार उतारे छे, बन्ने लोकमां आनंद पमाडी अन्ते ध्रुवपदनी प्राप्ति करावे छे.)
माहा सुभ स्थान जो है बैकुठ समांन, औसो रांम निवास है दूजो भिस्त निधान, दूजो भिस्त निधांन जाहां निज ब्रह्म बिराजै, सतगुरु ब्रह्म सरुप ओपमा ईनकुं छाजै, उभै अंग नहो भिन है ज्युं सरि सरता नीर,
पैंगा बंद सू भी अधिक है सबके सिर गुर पीर... ४७ .
(वैकुंठ समान अq महा शुभ स्थान जाणे बीजा स्वर्ग समान सागे छे ज्यां ब्रह्मस्वरूप सतगुरु कायम निवास करे छे, जेम तळाव अने नदीना नीरमां तफावत न होय अम सतगुरु अने पूर्ण ब्रह्ममा बन्ने अंग भिन्न जणातां नथी, पयगंबरथी पण तमामना शिर पर रहेला गुरु परमात्मा अधिक छे.) दोहा -
अनंत ओपमा पुज्य पुरुष, बिराजमान सुखधांम, अनेक ओपमा अनंत सुख, लाइक वडे ब्रीयांम*... ४८ मुख सरोज वांणी बिमल, ब्रह्म ग्यांन-विस्तार, आप रूप ओतारि धरि, बरन्यो सार असार... ४९
*ब्रीयाम-बिरुद