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________________ जून - 2015 अनुसन्धान-६७ नवां प्रकाशनो त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित - विभाग 1 (पर्व 1) सम्पादक - मुनि श्रीचरणविजयजी पुनःसम्पादक - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी प्रकाशक - क.स. नवम जन्मशताब्दी स्मृति शिक्षणनिधि, अमदावाद पृष्ठसङ्ख्या - 22 + 222 = 244 मूल्य - 300 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित - विभाग 2 (पर्व 2, 3, 4) सम्पादक - मुनि श्रीपुण्यविजयजी पुनःसम्पादक - श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिणी प्रकाशक - क.स. नवम जन्मशताब्दी स्मृति शिक्षणनिधि, अमदावाद पृष्ठसङ्ख्या - 14 + 338 + 93 = 445 मूल्य - 500 Rs पूर्वप्रकाशित आ बन्ने ग्रन्थोनुं पुनः अक्षराङ्कन अने शुद्धीकरणपूर्वकन पुनः सम्पादन, त्रिषष्टिकाव्यना अध्येताओ माटे शुद्ध अने समीक्षित आवृत्ति. आवरणचित्र-परिचय लाखथी बनेला पुंठा, जेने जैन ज्ञानभण्डारनी परिभाषामा 'पाटली' के 'पुंठियु' कहेवामां आवे छे ते, उपर कोई कुशल चित्रकारे आलेखेलां चित्रो पैकी बे चित्र, अहीं आपेल छे.. आवरण 1 पर मूकेलुं चित्र सुलसा श्राविका अने तेने भगवान महावीरे पाठवेलो संदेशो आपी रहेला अम्बड परिव्राजक चित्र छे. ढोलिया पर तकियाने अढेलीने बेठेली सुलसा, भगवानना नामनी माळा फेरवती संदेशो ग्रहण करे छे, ते केवी जाजरमान दीसे छे ! तेनो अलङ्कारमण्डित छतां पूर्ण मर्यादाशील पहेरवेश, उत्सुक अने विस्मित आंखो, माळा फेरववानी रीत, आ बधुं भावक-दर्शकने प्रथम दृष्टिए ज आकर्षी ले तेवू छे. तो सामे, हाथमा - खभे स्थापेल - दण्ड तेमज पुष्पछाबडीने पकडीने, पगमां चाखडी पहेरीने, एक पग ऊंचो राखीने, तापससहज रूक्ष नजर साथे ऊभेलो अम्बड पण केवो सर्वाङ्गसम्पूर्ण संन्यासी लागे छे ! तेनो देह-वान लीलो छे, जाणे भभूत चोपडी होय आखा डीले ! तेनुं कौपीन पण केवू रंगीन-सुन्दर ! कलाकारे जाणे जीव रेडी दीधो छ ! तेमांये काळी पृष्ठभू (Back ground) केवी रळियामणी दीसे ! आखा चित्रने ए केQ मस्त उपसावे ! आवरण 4 परतुं चित्र सती सुभद्रानी घटना आलेखे छे. तेना पर तेना सासु, पति व. द्वारा बदचलननो आक्षेप थयो छे. तेथी पोतानुं सतीत्व पुरवार करवा ते चाळणी वती कूवामाथी पाणी काढे छे. पाणीभरेली चाळणीमां असंख्य छिद्र होवा छतां, तेनी पवित्रताना प्रभावे एक पण टीपु पाणी पडतुं नथी, ते पाणी वडे ते, नगरना नहि ऊघडतां द्वारने, जळ-छंटकाव करीने ऊघाडी नाखे छे. चित्रमा कुवो, तेना थळा उपर ऊभीने पाणी सिंचती सुभद्रा, तेना बन्ने हाथमा पकडेली दोरी, ते वडे बांधेली ने कूवामा प्रवेशेली चाळणी, पूजापो लईने पाछळ ऊभेली बे सखीओ, चार दिशामां देखाता चार दरवाजा; श्यामरंगी पार्श्वभू उपर, राजस्थानी शैलीमा आलेखायेल आ समग्र दृश्य-चित्र केटलुं मनभावन बन्यु छे! अनुमानत: १९मी सदीनी आ चित्र-रचनानी कलर जेरोक्स ज उपलब्ध थई छे. मूळ चित्रो-पुंठियां क्या, कोनी पासे, तेनी जाण नथी. एक सज्जने केटलांक वर्ष अगाऊ, आ जेरोक्स नकलो आपेली, तेना आधारे आ चित्रो अहीं प्रकट थाय छे.
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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