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________________ १६४ अनुसन्धान-६७ जून - २०१५ १६३ मस्करी (मक्खलि) बन्यो त्यारे 'मङ' अने 'मक्खलि' वच्चे सेळभेळ थई होय ए सुशक्य छे. आ सेळभेळ जैन साहित्यमां थई जणाय छे केमके तेमनी पासे 'मङ्ख' शब्द हतो. अजैन ग्रन्थोमां मक्खलि / मस्करी ज देखाय छे. जैन देरासर नानी खाखर - ३७०४३५, जि. कच्छ, गुजरात पुरवणी पूज्य उपाध्याय भगवन्तनी आ पत्रचर्चा परत्वे केटलाक मुद्दा विचारणीय जणाय छ: १. चित्रपट देखाडीने गुजरान चलावती जाति माटे वपरातो 'मङ्ख' शब्द देश्य नथी. देश्य 'मङ्ख' शब्दनो अर्थ तो 'अण्डगोल, वृषण' थाय छे. ओ ज रीते 'प्रेक्षते'नु 'पेस्कदि' मागधीमां थाय छे, पैशाचीमा नहि. वळी 'मक्खलि' प्रयोग पालिसाहित्यमां जोवा मळे छे, अर्धमागधीसाहित्यमा तो 'मङ्गुलि' प्रयोग ज थाय छे. जोके आ बधी भाषिक विशेषताओने मूळ चर्चा साथे झाझी निसबत नथी. २. 'मस्करिन्' शब्दनी कर्मनिषेधपरक व्युत्पत्ति उपजावी काढवामां आवी होय ते खरेखर शक्य छ ज, परन्तु ओज रीते दण्डधारणपरक व्युत्पत्ति पण उपजावी काढेली ज होय ते शक्यता साव नकारी काढवा जेवी नथी. केमके पाणिनि पूर्वे दण्ड अर्थमा 'मस्कर' शब्द वपरातो होवानां प्रमाणो नथी, तेमज कोशकारोओ पाणिनिना अनुसरण रूपे कोशमां दण्डअर्थपरक 'मस्कर' शब्द नोंध्यो होय ते सिवाय पाणिनि पछीना संस्कृत साहित्यमां पण तेनो सामान्यतः वपराश देखातो नथी. तेथी सम्भवित छे के मस्करी परिव्राजकोनी ओळखाण आपवा खातर ज 'मस्कर'नो वेणुदण्डपरक अर्थ करवामां आव्यो होय. ३. दण्डी संन्यासीओनी अनेक परम्पराओ प्रवर्ती होवानुं इतिहास जणावे छे. तेमांथी नियतिवादी (निवृत्तिवादी) संन्यासीओ माटे ज 'मस्करी' शब्द वपरावानुं कारण शं? ते पण विचारणीय छे. बौद्ध संस्कृत ग्रन्थो तो वळी 'मस्करी' शब्द 'दण्डी परिव्राजक' अर्थमां नहि, पण गोशालक माटे ज सीधो प्रयोजे छे. ४. गोशालक जो 'मस्करी (-दण्डी) परिव्राजक' होवाना लीधे ज 'मडलि' गणाता होत, तो अर्धमागधी साहित्यमा उपलब्ध तेमनां अनेक वर्णनोमांथी कोईक वर्णनमां तो 'दण्ड'नो उल्लेख अवश्य मळत. पण तेम तो नथी, कमसे कम आना परथी अटलुं तो साबित करी ज शकाय के 'मस्करी'नो सीधो सम्बन्ध 'दण्डी' साथे नथी. केमके ओ वगर तो मस्करी शब्द ज जेना पर आधारित होय ते दण्डनो उल्लेख केम नथी ते समजावतुं शक्य नथी. ५. उपाध्याय भगवन्त जणावे छे के "गोशालानुं जातिवाचक नाम 'मा' अने तेनुं परिव्राजकपणानुं नाम 'मक्खलि' वच्चे जैन साहित्यमां भेळसेळ थई गई छे." आ विधान समजवू मुश्केल लागे छे. केमके गोशालक पोते 'मक्खलि' नहीं, पण 'मङ्गुलिपुत्त' तरीके ओळखाता हता, अने ते पण तेमणे प्रव्रज्या स्वीकारी ते पूर्वथी. 'मङ्गुलि' तो तेमना पितानुं नाम ह. "एयस्स गोसालस्स मडुलिपुत्तस्स मङ्गुलि नामं मले पिया होत्था" (भग० १५.१.२). हवे जो 'मजलि' शब्दने परिव्राजकपणा माटे ज नियत करीशुं तो गोशालकना पिताना 'मङ्गुलि' नामनो खुलासो अशक्य छे. तो 'निग्गंठ नातपुत्त' के 'संजय वेलद्विपुत्त'मा जेम ज्ञात के वेलट्ठिने गोत्रनाम समजीओ छीओ, तेम 'गोसाल मङ्कलिपुत्त'मा 'मलि'ने परिव्राजकपणानुं सूचक नहि, पण गोत्रवाचक नाम तरीके न समजी शकाय? अने जो ओम समजीओ तो 'मङ्कलि'ने 'मङ्ख' ओ जातिवाचक नाम साथे वधारे सम्बन्ध होई शके के 'मस्करिन्' ओ परिव्राजकपणा साथे? ६. उपाध्याय भगवन्तनुं ओ विधान यथार्थ जणाय छे के 'मङ्खलि' मांथी 'मस्करिन्' थर्बु शब्दविकासना क्रमनी दृष्टि शक्य नथी, पण बीजी रीते जोईओ तो 'मस्करिन्'मांथी पण 'मङ्कलि' थवं शक्य नथी जणात. तो पछी, जेम वैदिक संस्कृत / प्रथमस्तरनी प्राकृतना आपणे 'द्वितीयस्तरीय प्राकृत' अने 'संस्कृत' ओम बे फांटा स्वीकारीओ छीओ तेम, मूलभूत कोई अकज शब्दना, संस्कृत 'मस्करी', मागधी 'मस्कली', पाली 'मक्खली', अर्धमागधी 'मङ्कली' अम समान्तर परिवर्तनो समजी न शकाय? - त्रैलोक्यमण्डनविजय
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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