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________________ जून - २०१५ १६१ १६२ अनुसन्धान-६७ पत्रचर्चा मस्करिन् / मजलि विशे - उपा. भुवनचन्द्र अनु. ६६ना 'ट्रॅक नोंध' विभागमा 'मस्करिन्' शब्द विशे मु. त्रैलोक्यमण्डनविजयजीनी एक नोंध प्रगट थई छे. 'मडलि'माथी संस्कृत रूपान्तर थईने 'मस्करिन्' थयु एवं जणाववानो लेखकनो आशय समजाय छे. आवं संस्कृतीकरण थतुं आव्युं छे तेनी ना न कही शकाय. परन्तु प्रस्तुत शब्दनी सफर ए रीते थई होय एवं मानता पहेलां थोडं विचारवानी जरूर छे. मड, तेमांथी मङ्खलि, तेमांथी मक्खलि, तेनुं रूपान्तर मस्करिन् - आवो क्रम लेखक सूचवे छे. आ क्रम स्वीकारवामां व्युत्पत्ति अने शब्दविकासना नियमोनो भङ्ग थतो जणाय छे. "आ शब्द- उच्चारण केटलेक ठेकाणे मक्खलि थाय छे." - एम लेखकश्रीए नोंध्युं छे. हवे विचारवानुं ए छे के 'मङ्खलि'नुं 'मक्खलि' थाय ए स्वाभाविक गणाय के 'मक्खलि'नुं 'मङ्खलि' थाय ए सहज गणाय ? अने पछी 'मङ्गुलि'मांथी 'मस्करिन्' शब्द आकार ले एवो क्रम उच्चारनी दृष्टिए शक्य गणाय ? लोको द्वारा उच्चारणनी दृष्टिए 'मक्खलि' पूर्ववर्ती अने 'मडलि' पश्चाद्वर्ती होवो जोईए; 'क्ख'मांना 'क्'नो उच्चार लुप्त थाय त्यारे तेना स्थाने अनुनासिक / अनुस्वार देखा दे अने 'मङ्कलि' शब्द स्थान ले. ए ज रीते 'मक्खलि' अने 'मस्करिन्'मां पण 'मस्करिन् मांथी 'मक्खलि' सहजप्राप्त गणाय. _ 'मस्कर' शब्द पाणिनिना समयनो छे. ए समये संस्कृत प्रचलनमा हाँ, प्राकृतो हजी ग्राम्य भाषाओ गणाती हती. ए युगमा उच्च वर्ण अने शिक्षित वर्ग संस्कृतमां व्यवहार करतो, बालको-अशिक्षितो-हीन वर्णना लोको अशुद्ध । भ्रष्ट संस्कृतनो प्रयोग करता. आ प्रवाह पाणिनिथी पण पहेला शरु थई चूकेलो अने मागधी-अर्धमागधी वगेरे भाषाओना पिण्ड बंधावा मांड्या हता ए हकीकत छे. अने ए पण हकीकत छे के मागधी वगेरे भाषाओना उच्चार संस्कृतनी निकटना हता. 'प्रेक्षते'नुं पैशाचीमां 'पेस्कदि' वगेरे मुद्दा तो लेखके पण नोंध्या छे. ज्यारे आ प्रक्रिया चालु हती त्यारे मस्करिन् जेवा शब्द माटे अवळो क्रम शा माटे विचारवो पडे ? मस्करिन्नु मागधीमां 'मस्कलि', अर्धमागधीमां मक्खलि, आगळ जतां क्नो लोप थतां मङ्कलि - आवो स्वाभाविक क्रम तजी देवाचें कोई कारण नथी. सवाल रह्यो कल्पसूत्रमा मळता 'मा' शब्दनो. 'चित्रपट देखाडीने आजीविका चलावनारी जाति' एवा अर्थनो मख शब्द देश्यभाषानो स्वतन्त्र शब्द ज गणवो जोईए, मस्करिन्-मांथी नीपजेला मक्खलि / मलि साथे एनी सेळभेळ थई होय ए बनवाजोग छे, कारणके मङ्खनो पुत्र गोशालक संन्यासी - 'मक्खलि' बन्यो त्यारे सामान्य जनता मङ्खलिपुत्त अने मडपुत्त वच्चे गोटाळो करी शके. भाष्यकारे 'मस्करिन्'नो अर्थ 'कशं करो नहि' एवो उपदेश आपनार संन्यासी - एम को छे ते मुद्दो अहीं कार्यसाधक न बने. संस्कृतमा 'दण्ड'वाचक मस्कर शब्द हतो ज. वधुमां ए दण्डी परिव्राजको नियति / निवृत्तिनो बोध आपता हता, तेथी प्रवृत्तिवादी ब्राह्मण परम्परा 'मस्कर'माथी कटाक्षमा 'मा कुरुत' - 'मस्कर' एवी व्युत्पत्ति उपजावी तेमनी हांसी करे ए सुसम्भवित छे. शब्दनो व्युत्पत्तिप्राप्त अर्थ बाजुए राखी, अन्य अर्थ - मार्मिक / सूचक अर्थनो बोध कराववा माटे आवी व्याख्याओ नीपजाववानी परिपाटी वैदिक । जैन । बौद्ध परम्परामा हती, जेने निपात के निरुक्ति कहेता हता. एवी निरुक्त व्याख्याओ आजे पण थती होय छे - मोहनो क्षय ते मोक्ष. दुनिया = जेना दु(बे) निया(न्याय) होय ते दुनिया, इत्यादि.. सारांश : मङ्खलि / मक्खलि शब्द ए युगनो छे के ज्यारे संस्कृत शब्दो भ्रष्ट थई प्राकृत स्वरूप पामी रह्या हता, तेथी मस्करिन् माथी मस्कलि → मक्खलि → मङ्गुलि - ए रीते आ शब्द विकस्यो होय एम मानवं तर्कसङ्गत गणाय, 'मस्कर' शब्द प्राचीन संस्कृतनो शब्द छे. 'मङ्क' शब्दने स्वतन्त्र देश्य शब्द समजवो जोईए. 'मा कर्षत' एवी व्याख्या विशेष अर्थ काढवा माटे योजायेल निरुक्त / निपात छे, 'मस्कर'नो 'दण्ड' एवो अर्थ तो कोश / व्याकरणथी सिद्ध छे ज. मस्करी परिव्राजको नियति / निवृत्तिना पुरस्कर्ता हता, 'मङ्ख' एक जातिवाचक नाम हतुं. गोशालक मङ्क हतो, पछी
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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