SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जून - २०१५ १५५ अनुसन्धान-६७ - साध्रम, समाधरम : आ शब्द विशे आगला अवलोकनमा नोंध करी हती. प्रस्तुत अंकमां क्र. २६ना वि.पत्रमा (पृ. २७१) आ शब्द "साध्रम हीयडै साच ए" आ पंक्तिमा छे. क्र. १५ना वि.पत्रमा आ शब्द वधु स्पष्ट मळे छ : उमराव साव तिनकै अपार है, स्वामधरम बहु हुजदार" (पृ. ११३). आ ठेकाणे आ शब्द स्पष्ट थाय छे. मूळ शब्द स्वामिधर्म छे अने साध्रम, सांमध्रम, सामधरम वगेरे तेना भ्रष्ट उच्चारो छे. सन्दर्भ परथी आनो अर्थ वफादारी, स्वामिभक्ति जेवो समजाय छे. - 'गाहीड' शब्द राजस्थानी भाषाना वि.पत्रोमां एकथी वधु वार आवे छे. आ अंकमां पण छे. (पृ. २७१). अर्थ स्पष्ट थतो नथी. - पत्रो जे स्थानेथी लखाया छे अने जे स्थाने मोकलाया छे ते स्थानो संशोधनपात्र छे. कोई शोधछात्र आ विषय पर संशोधन करे तो त्यांनी खूटती विगतो कदाच आ पत्रोमांथी मळी आवे. जैन सङ्कनी वर्तमान स्थितिनी जाणकारी पण मळे. छपायेल वाचनाओमां केटलांक शुद्धीकरण : अशुद्ध जायणो जाणयो ४६ १७ क्रीड च० क्रीडच्च० ४६२१ प्रीति(ती) यते प्रतीयते अमली बांण अमलीबा(मा)ण नीचेथी ३ रहेज महा(ह)त रहे जहां महंत एक ठूल ए कबूल २७१ नीचेथी २ साध्र महियडै साध्रम हियडै २९३ नीचेथी १० कतहु री करन कत दूरी करन कहां सोवरण कहांसे वरण शब्दो विशे - वि.पत्र क्र. माछली नहीं, पोयणां वेसरवाहिनी ऊंटगाडी होई शके वावला 'बावला' वांचवू जोईए दुजणी परायापणुं, पारकापणुं तकसीर चूक, भूल, गुनो अधग 'अधम' शब्द संभवे खाग चित्रामवाल चित्रोवाळु (चितारो नहीं) शोभे (फावे) अडालच अदालत होई शके पोहकरणा पुष्करणा ब्राह्मण अपणाइत पोतानो मानेल गल्ल 'मुख' होइ शके हमरके अमारे त्यां मुसलमानी जाति ढिग पासे भिस्त बेहस्त (स्वर्ग) ठाढीकाठाढेंक ऊभी रही /ऊभा रह्या ओसंकिया पाछा हठ्या (संकोच नहि) पवन (पृ. ४९, पं. ५) रिधु (पृ. ४५, पं.११) जेवा शब्दो नोंधाया नथी. 'गेवरघट्टा' जेवा शब्दो, शब्दकोशमा लेवा जेवा गणाय (अर्थ - गजवरघटा), 'छेलछोगाळा' शब्द आजे पण प्रचलित छे. पृ. ५४ पर तेनुं 'छेलचोगाळा' एवं जूनुं रूप मळे छे. पृ. ५६ पर 'विरासीर महावीर' तीर्थ राणकपुरनी पासे छे एवो उल्लेख छे. आ शब्द बीजा वि.पत्रमा पण आव्यो छे. अनुसन्धान ६६ आ अंङ्कमा विविध विषय अने विविध प्रकार (तथा विविध भाषाओ)नी कृतिओनो रसप्रद अने वाचनक्षम गुच्छ प्रगट थयो छे. आ अंकमां कागळ नेचरल शेडनो वपरायो छे. आ प्रकारनो कागळ वाचनने अनुकूळ होय छे. आशा राखीए के अनुसन्धान माटे हवे आज कागळ निश्चित कराशे. पोयण
SR No.520568
Book TitleAnusandhan 2015 08 SrNo 67
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy