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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
मागसिरमां टाढि अतिघणी, वाइ मुझ देह । इणि रति मुझसुं छल करी, निठुरई दीधो छेह ||८|| पोसई ते पूरव प्रीतडी, सांभरइ सुजान । पिउविरहो मुझ दुख दहइ, तूं तो वडो रे अजाण ॥९॥ माहा मोटी यामिनी, नावइ नींद लगार । वासर अन्ननी रुचि नहीं, तुझ विण भरतार! ॥१०॥ तेल-फूलेल-गुलालसुं, रसिआ फाग रमंत । तुम्ह विण कुण साथि मुं, निसदिन झूरंत ॥११॥ सखी! चतुर चैत्र महीणडइ, चांपां बहु फूल । अंगि सोल शृंगार ए, थाइ प्रतिकूल ॥१२॥ सहकारशाख वैशाखमई, आवइ महाराज! | तुं तो पिउडा! घरि नहीं, आणी कुण दिइ आज ॥१३॥ जेठमासिं तावड तपइ, लू अति घणी वाय । अंबर नि चंदन घणां, डीलिं अड्यां न सुहाय ॥१४॥ ए बारमासे करी वीनती, तोहि न वल्या नेम । राजुल तब ऊजलगिरि, पुहती ऊन्नालि खेम ॥१५।। इम मन वाली आपणुं, दिख्या लेइ प्रभु पासि । पिउ पहिली सिवपुर गई, पूगी पूरण आस ॥१६॥ पंडित श्रीनयविजय सुंदरु, बुध जसविजय सीस । सीस तत्त्व भलई भावसुं, प्रणमइ निसदीस ॥१७॥
रहो रहो नेमजी वालहा... ॥ इति श्रीनेमनाथ द्वादशमास संपूर्ण । श्रेयोऽस्तु ॥
पूरवली प्रीति संभारो, तुम्ह दरिसण लागइ प्यारो,
किम राखो नेह उधारो रे ॥३॥ कंत अजाण होइ तेहनि कहीइ, नेह कीजइ तो निरवहीइ,
डूंगरडइ एकलडा न रहीइ रे ॥४॥ आवी पावस रति सुखकारा, दीसइ छइ अति मनोहारा,
बापइओ करत पुकार रे ॥५॥ पंथी सबही घरि आवइ, कंदर्प ते अधिक जगावइ,
एक निठुर नेम न आवइ रे ॥६॥ सखि! श्रावण मास ते आयो, अंगि मुझ मदन जगायो,
विरहीनि अति दुखदायो रे ॥७॥ झिरमिर वरसइ छइ मेह, तापइ मुझ दाझइ देह,
एणी रति सालइ सनेह रे ||८|| भाद्रवडइ भोग न छोरो, अबलासुं का मन चोरो,
तुम्ह साथि किस्यो चालइ जोरो रे ॥९॥ तुझ विण निशि नीद न आवइ, मुझ अन्नपाणी नवि भावइ,
दोहिला तुझ विण दिन जावइ रे ॥१०॥ आव्यो ते आसोमास, आवो एणइ आवास,
पूरो ते मुझ मनि आस रे ॥१शा कार्तिकडइ अतिदुख दीधुं, कामणगारइ कामण कीर्छ,
माहरु चित्तईं चोरी लीधुं रे ॥१२॥ प्रेमई पूरी बोलइ नारी, योवन कां जाओ हारी,
जूओ हियडइ कांत विचारी रे ॥१३|| सखि! जाइ मनावो एकांत, वेगि तेडी आवो कंत,
जिम विरहनो थाइ अंत रे ॥१४॥ कुण आगलि दुख कहीजइ, योवननो लाहो लीजइ,
जिम दुख सघलां ते छीजइ रे ॥१५॥ आहवी रूडी ए चित्रशाली, नेहई निजरि जूओ नीहाली,
एहवी सेज _ [म?] मूंकओ सुहाली रे ॥१६।।
२. नेमनाथस्तवन सदगुरुना प्रणमी पाय, थुणसुं श्रीयदुपतिराय,
ऊलट अधिके रदओ थाय रे ॥१॥ सामलिआ । कर जोडी राजुल बोलइ, अष्टभवनी प्रीति ज खोलइ,
नवमइ भवि कां डमडोलइ रे ॥२॥