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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
एहवां राजुल वचन बोलंती, पिउनुं ते ध्यान धरती,
गिरनारि चढी विलवंती रे ॥१७|| सामी मुझ सुणि एक वात, एसी छइ तुम्हारी धात,
____ मानि वचन शिवादेवीजात ॥१८॥ नेम हाथि संयम लेई, अविहड तब प्रीति करेई,
शिवपुर पिउ पहिली पुहचेई रे ॥१९॥ नेम थुणिओ मनि उल्लास, महीसाणे रहीअ चउमास,
पूगी छइ मुझ मनि आस रे ॥२०॥ संवत सत्तरतर (१७१३) वरसिं, कार्तिक शुदि पंचमी दिवसि,
ए तवन करिडं मनहरखि रे ॥२१॥ पंडित श्रीनयविजय ईस, श्रीजसविजय तेहनो सीस,
सीस तत्त्व दिइ आसीस रे ॥२२॥ सामलिआ ॥ ॥ इति श्रीनेमनाथस्तवनं संपूर्णम् ॥ शुभं भवतु ॥ कल्याणमस्तु । श्रेयः ॥
तुम्ह सरस सकोमल वाणी, जाणे मधुरी अमिय समाणी,
सहू जननि चित्त सुहाणी ॥५॥ तपगच्छइ उदयो भान, दरिसनथी नवइ निधान,
जिम सासननो सुलतान ||६|| साह सिवगण कुलि अवतंस, मात भाणी उरवरि हंस,
दीपाव्यो जेणि ओसवंस ॥७॥ कलिकालि गौतम सरिखो, साचो सीलिं थूलिभद्र निरखो,
एहवो गुरु मइं पुण्यइं परख्यो ||८|| विबुध श्रीनयविजय राय, श्रीजसविजय सुगुरुपसाय,
सीस तत्त्वविजय गुण गाय ||९|| सूरी० ॥ ॥ इति श्रीविजयप्रभसूरिभास संपूर्ण ॥
३. विजयप्रभसूरिभास समरी श्रुतदेवी माय, वली लही सदगुरु सुपसाय,
गुण गाउं तपगछराय ॥१॥ सूरीसर! तुम्हसुं अविहड नेह,
जिम चातकनई चित्त मेह.... श्रीविजयप्रभसूरिंद, पाय प्रणमइ नरवरइंद,
मुख सोहइ जिस्यो अरविंद ॥२॥ श्रीविजयदेव-पटोधारी, तुम्ह मूरति मोहनगारी,
निरखइ टोलइ मली नरनारी ॥३॥ मुखमटकइ मनई मोहइ, तुझ रूप अनोपम सोहइ,
दूजो जोडि न आवइ कोइ ॥४॥
४. विजयप्रभसूरिस्वाध्याय शुभ सरस वाणी दिओ माय जी, गुरुमुख मरकलडइ । कर जोडी प्रणपाय जी, लोचन लटकलडइ । हेजई थुणसुं तपगछराय जी गु०,
श्रीविजयप्रभसूरिराय जी लो० ॥१॥ विजयदेव-पटोधर राजइ जी, तपगछ ठकुराई छाजइ जी ।। तुम्ह दूर किओ सवि फंद जी, मुख मोहनवल्लि कंद जी ॥२॥ ससिवयणी मलपती आवइ जी, थाल भरी भरी मोती वधावइ जी । वली याचकजन गुण बोलइ जी, कुण आवइ ए गुरु तोलइ जी ॥३॥ सहू वंछइ तुम्ह दीदार जी, जिम पिकनि मनि सहकार जी । तुम्ह विरहो अम्ह न खमाय जी, घडी एक मास सम थाय जी ॥४॥ गेलई गजगति चालि सुहावइ जी, मलपंता पाटीइ आवइ जी । मीठी अमृतमइ तुझ वाणी जी, पडिबोहइ तूं भवि प्राणी जी ॥५॥ सिवगणकुलि उदयो दिणंदा जी, मात भाणी केरो नंदा जी । जिनसासन सोभाकारी जी, जेणई कीरतिवेलि विस्तारी जी ॥६॥